वैष्णवो
की वार्ता
(वैष्णव
१३०)श्रीगुसांईजी
के सेवक निहालचंदजलौटा क्षत्रिय
की वार्ता
निहालचंद
जलोटा उज्जैन के निवासी थे|
पुष्टिमार्गीय
ग्रन्थों के श्रवण में उनकी
बहुत आसक्ति और आस्था थी ।
श्रीठाकुरजी भी उनको अनुभव
कराते रहते थे । एक समय की बात
है -
ये
निहालचंद श्रीगोकुल के लिए
चल दिए|
मार्ग
में इनका सोलह व्यापारियों
का साथ हो गया । चोरों ने मार्ग
में से व्यापारियों के साथ
ही निहालचन्द का अपहरण कर
इन्हें कैद कर लिया । चोरों
ने इन्हें मार डालने का निश्चय
किया । चोरों का जो मुख्य पटेल
(मुखिया)
था,
उसकी
माँ वैष्णव थी । चाचा हरिवंशजी
ने भीलों के जिस गाँव को वैष्णव
बनाया था,
वस
उसी गाँव की बेटी थी । एक दिन
रात में उसने कीर्तन की ध्वनि
सुनी,
कयोंकि
निहालचंद भाई रात्रि के समय
कीर्तन करते थे । पटेल की माँ
रात्रि में निहालचंद के कैद
खाने के निकट गई और उससे उनका
नाम गाँव व स्थान पूछा जैसे
ही इन्होंने अपना नाम लिया,वृद्धा
की श्रद्धा उमड़ पड़ी । उसने
वैष्णवों से निहालचंद का
गुणगान पहले से ही सुन रखा था
। उसने अपने बेटे को बुलाकर
उन्हें कैद खाने से बाहर निकाला
। उनसे अपने बेटे को क्षमा
कराया । समस्त गाँव को वैष्णव
दीक्षा दिखाई । श्रीगुसांईजी
को गाँव से भेंट दिलाई । निहालचंद
ने उन चोरों से कहा कि वे चोरी
का निंदित कार्य छोड़कर खेती
करना प्रारम्भ करें । निहालचंद
ने साथ के सोलह व्यापारियों
को भी मुक्त करा दिया । वहाँ
से निहालचंद उन व्यापारियों
के साथ श्रीगोकुल आए । वे सोलह
व्यापारी भी वैष्णव हुए ।
वैष्णवों के पास जो माल था,
वह
सब उन्होंने श्रीगुसांईजी
को भेंट कर दिया । वे निहालचंद
ऐसे कृपा पात्र थे जिनके साथ
से भोलीं का गाँव और सभी व्यापारी
वर्ग वैष्णव हो गया |
|
जय
श्री कृष्णा |
0 comments:
Post a Comment