२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव १२९)श्रीगुसांईजी के सेवक एक पटेल की वार्ता
यह पटेल गुजराती लोगों के साथ श्रीगोकुल गया और श्रीगुसांईजी का सेवक
हुआ । श्रीगुसांईजी के सातों लालजी श्रीगुसांईजी को काकाजी कहते थे । वह पटेल भी
उन बालकों का अनुकरण करते हुए श्रीगुसांईजी को काकाजी कहने लग गया । श्रीगुसांईजी
ने उसके भोले स्वभाव को देखकर उसे गायों
की सेवा करने के लिए खिरक में रख दिया । वह गायों की ऐसी सेवा करता था जिससे गायों को सुख प्राप्त हो ।
गायों के नीचे जाड़ता था और प्रतिदिन रेती बिछाता था । प्रतिदिन पुरानी रेती को
जाड़कर बाहर डालता और नई रेती बिछाता था प्रतिदिन पुरानी रेती को जाड़कर बाहर डालता
और नई रेती बिछाता था उसके मन में भाव था
कि गायों के शरीर में जीव न पड़ जाँए और
गायों को ठण्ड नहीं लगे । गायों की ऐसी सेवा देखकर श्रीगुसांईजी उस पटेल पर बहुत
प्रसन्न हुए । वह गायों को घास भी धोकर खिलाता था । वह विचारता था कि यदि घास के
साथ मिटटी खाई जाएगी तो दूध में किरकिराहट होने पर श्रीनाथजी दूध कैसे आरोगेंगे । वह पटेल किसी दिन
तो समय पर अपने लिए पातर (पत्तल) ले आता था, कभी गायों की सेवा में विलम्ब हो जाता तो वह भूखे ही
सेवा करता रहता था,पातर (पत्तल) लेने नहीं जाता था । उस समय
श्रीनाथजी उसको लड़डू देते थे, वह खाकर सेवा करता रहता था ।
एक दिन श्रीगुसांईजी ने उस पटेल से पूछा - " तू प्रतिदिन पत्तल लेने क्यों
नहीं आता है?" उस पटेल ने कहा - "काकाजी महाराज,किसी किसी दिन श्रीनाथजी मुझे लड़डू दे देते हैं अत: मैं पत्तल लेने नहीं
आता हूँ ।"यह सुनकर तो श्रीगुसांईजी बहुत प्रसन्न हुए| उन्होंने
कहा - " तेरी पत्तल नित्य खिरक में ही
भिजवाया करेंगे ।" श्रीगुसांईजी की आज्ञा पाकर वह बड़े मनोयोग से सेवा करने लगा । एक दिन
पटेल ने कहा - "अब मुझ को पत्तल मत भिजवाया करो,क्योंकि
श्रीनाथजी मुजको नित्य प्रति लड़डू दे देते हैं ।" यह सुनकर श्रीगुसांईजी
ने आज्ञा की - " तुम प्रतिदिन पूरा
लड़डू कहा जाते हो, या कुछ बचा भी लेते हो ।" पटेल ने
कहा - "आज का आधा लड़डू मेरे पास शेष है|" श्रीगुसांईजी
ने उस लड़डू को मँगाकर देखा तो वह शयन भोग का लड़डू था । श्रीगुसांईजी उस पटेल पर
बहुत प्रसन्न हुए । एक दिन बरसात बहुत हुई । वह पटेल भूखा रहा । श्रीनाथजी जारी-
बंटा लेकर पटेल के पास आए,और बंटा में से लड़डू निकाल कर पटेल
को दिया वे जारी बंटा वहीँ पर छोड़ गए । पटेल ने जारी- बंटा ले जाकर श्रीगुसांईजी
को बैठक में दिया और कहा - " रात में श्रीनाथजी जारी-बंटा खिरक में भूल आए
हैं ।" श्रीगुसांईजी ने पटेल को
आज्ञा की- " अब से तुम सिंह पौर पर रखवाली की सेवा करो । पटेल तब से सिंह पौर
पर बैठने लग गए । एक दिन श्रीनाथजी सिंहपौर से बाहर पधारने लगे तो पटेल ने उनसे
कहा- "रात में इतने आभूषण धारण करके बाहर मत पधारो । यदि आप जओंगे तो काकाजी
हम पर खिजेंगे ।" श्रीनाथजी ने उसकी बात अनुसुनी कर दी और आगे बढ़ गए । पटेल
भी रक्षा की द्रष्टि से उनके पीछे पीछे गया । श्रीवृन्दावन में जाकरश्रीनाथजी ने
रास किया । उस पटेल को रास के दर्शन हुए ।
वहाँ पर ब्रज भक्तों के बहुत से आभूषण गिर गए,पटेल उन सभी को
बीनकर ले आया । श्रीगुसांईजी के समक्ष समस्त आभूषणों को रखते हुए पटेल ने कहा -
" काकाजी महाराज,ये श्रीनाथजी रात में मंदिर से बाहर
जाते हैं और इनके साथ हजारों स्त्रियाँ भी जाती हैं । मुझे तो यही आश्चर्य है कि ये हजारों स्त्रियाँ मंदिर में कहाँ रहती
होंगी?" इन सबने मिलकर नाच- गान किया है । इनके आभूषण
नृत्य में गिर गए थे । उन्हें मैं समेट कर (एक एक बीनकर) ले आया हूँ ।" यह सुनकर श्रीगुसांईजी बहुत
प्रसन्न हुए । श्रीगुसांईजी के मन में विचार आया की पटेल तो स्वाभाविक प्रपंच की
स्मृति भूल गया है । इसकी भागवत स्वरूप में आसक्ति सिद्ध हो गई हैं । इसको गायों की सेवा से निरोध - सिधि हुई है । इसके
भाग्य की कथा प्रशंसा की जाए,जिसके अरस-परस श्रीनाथजी हो रहे
है । श्रीगुसांईजी ने उससे कहा - " तू
सिंह पौर की रखवारी करता रह,जहाँ श्रीनाथजी जाँए,
उन्हें जाने दिया कर, उन्हें रोकना नहीं ।
तुजे साथ ले जाँए तो ही साथ जाना ।"
पटेल ने कहा - "काकाजी महाराज,ये गहना खो आ आएँगे तो
क्या होगा?" श्रीगुसांईजी ने कहा - " हमारे घर में
गहने की कमी नहीं हैं । खो जाए तो खोने दो
।"यह सुनकर पटेल चुप हो गया । वह पटेल सिंह पौर पर बैठा रहता था । जब
श्रीनाथजी बाहर पधारते तो उसे जगाकर कह
जाते थे और कभी चाहते तो साथ भी ले जाते थे । वह पटेल श्रीगुसांईजी का ऐसा भगवदीय
था |
| जय श्री
कृष्णा |
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