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वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव
१३१)श्रीगुसांईजी
की सेवक गंगा बाई क्षत्राणी
की वार्ता
गंगाबाई
की माता महावन में रहती थी ।
वह श्रीगुसांईजी की सेवक थी
। उसका चित्त श्रीगुसांईजी
के स्वरूप में लग रहा था । उसके
मन में श्रीगुसांईजी के स्वरूप
के प्रति काम बुध्धि रहती थी
। लेकिन श्रीगुसांईजी की तो
प्रतिज्ञा थी कि पराई स्त्री
के सम्मुख कभी काम बुध्धि से
देखना ही नहीं । उस क्षत्राणी
की यह वृत्ति देखकर श्रीगुसांईजी
ने उस क्षत्राणी का श्रीगोकुल
में आना बन्द करा दिया । उसे
बारह वर्ष तक श्रीगोकुल में
नहीं घुसने दिया । इसलिए वह
विप्रयोग भाव से एक दिन महावन
में श्रीगुसांईजी का ध्यान
कर रही थी । उसी बीच उसे स्वप्न
हुआ कि उसको गर्भ स्थिति हो
गई है । उसी गर्भ से गंगा बाई
का जन्म हुआ । गंगा बाई को जन्म
देकर उसकी माता तो भगवल्लीला
में लीन हो गई । गंगा बाई बड़ी
हुई और श्रीगुसांईजी की सेवक
हो गई । वह अब महावन से गोपालपुर
में आकर रहने लग गई । उनसे
श्रीगोवर्धननाथजी हँसते -
खेलते
और बातें करते थे । सब लीलाओं
के दर्शनकराते । गंगाबाई लीला
के पद बनाकर उनके आगे गाती थी
। गंगा बाई से सभी पदों में -
" श्रीविटठल
गिरिधारण ऐसी छाप अंकित है ।
"
गंगा
बाई सम्वत १६२६ से १६३६ तक (एक
सो आठ वर्ष तक)
भूतल
पर रही । यह गंगा बाई मेवाड़
में श्रीनाथजी के साथ आई थी
। इनकी विशेष बात "
श्रीनाथजी
के "प्राकट्य"
में
लिखी है । -
"एक
दिन श्रीनाथजी ने श्रीहरिरायजी
को मेवाड़ में कहा -
" गंगाबाई
को वस्त्राभूषण पहनाकर अति
सुन्दर साज शृंगार करके रात
के समय जगमोहन में बैठा दो ।"
श्रीहरिरायजी
ने वैसा ही किया । श्रीनाथजी
जगमोहन में से देह सहित गंगा
बाई को लीला में ले गए ।"
सो
वह गंगा बाई श्रीनाथजी की ऐसी
कृपा पात्र थी । इनकी वार्ता
का विस्तार कहाँ तक किया जाए
|
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जय
श्री कृष्णा |
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