Wednesday, April 20, 2016

Shri Gusaiji Ki Sevak Ganga Bai Kshtrani Ki Varta

२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव १३१)श्रीगुसांईजी की सेवक गंगा बाई क्षत्राणी की वार्ता

गंगाबाई की माता महावन में रहती थी । वह श्रीगुसांईजी की सेवक थी । उसका चित्त श्रीगुसांईजी के स्वरूप में लग रहा था । उसके मन में श्रीगुसांईजी के स्वरूप के प्रति काम बुध्धि रहती थी । लेकिन श्रीगुसांईजी की तो प्रतिज्ञा थी कि पराई स्त्री के सम्मुख कभी काम बुध्धि से देखना ही नहीं । उस क्षत्राणी की यह वृत्ति देखकर श्रीगुसांईजी ने उस क्षत्राणी का श्रीगोकुल में आना बन्द करा दिया । उसे बारह वर्ष तक श्रीगोकुल में नहीं घुसने दिया । इसलिए वह विप्रयोग भाव से एक दिन महावन में श्रीगुसांईजी का ध्यान कर रही थी । उसी बीच उसे स्वप्न हुआ कि उसको गर्भ स्थिति हो गई है । उसी गर्भ से गंगा बाई का जन्म हुआ । गंगा बाई को जन्म देकर उसकी माता तो भगवल्लीला में लीन हो गई । गंगा बाई बड़ी हुई और श्रीगुसांईजी की सेवक हो गई । वह अब महावन से गोपालपुर में आकर रहने लग गई । उनसे श्रीगोवर्धननाथजी हँसते - खेलते और बातें करते थे । सब लीलाओं के दर्शनकराते । गंगाबाई लीला के पद बनाकर उनके आगे गाती थी । गंगा बाई से सभी पदों में - " श्रीविटठल गिरिधारण ऐसी छाप अंकित है । " गंगा बाई सम्वत १६२६ से १६३६ तक (एक सो आठ वर्ष तक) भूतल पर रही । यह गंगा बाई मेवाड़ में श्रीनाथजी के साथ आई थी । इनकी विशेष बात " श्रीनाथजी के "प्राकट्य" में लिखी है । - "एक दिन श्रीनाथजी ने श्रीहरिरायजी को मेवाड़ में कहा - " गंगाबाई को वस्त्राभूषण पहनाकर अति सुन्दर साज शृंगार करके रात के समय जगमोहन में बैठा दो ।" श्रीहरिरायजी ने वैसा ही किया । श्रीनाथजी जगमोहन में से देह सहित गंगा बाई को लीला में ले गए ।" सो वह गंगा बाई श्रीनाथजी की ऐसी कृपा पात्र थी । इनकी वार्ता का विस्तार कहाँ तक किया जाए |
| जय श्री कृष्णा |



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