Monday, April 25, 2016

Shri Gusaiji Ke Sevak Rupchand Nanda Ki Varta

२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव १३३)श्रीगुसांईजी के सेवक रूपचंद नंदा की वार्ता

(प्रसंग-)
रूपचंद नंदा आगरा के निवासी थे । वे एक बार श्रीगोकुल में आए । उस समय श्रीगुसांईजी के पास राघवदास ब्राह्मण श्रीसुबोधिनीजी पढ़ रहे थे । पढ़ने समय ही राघवदास के मन में एक विचार आया कि चाचा हरिवंशजी परदेश में जाते है और बहुत मात्रा में भेंट लेकर आते हैं| वे तो इतने अधिक पढें लिखे भी नहीं हैं| यदि मेरा जैसा पण्डित उनके स्थान पर जावे तो उनसे कई गुनी अधिक भेंट ला सकता है| उनके मन की बात को श्रीगुसांईजी जान गए तथा रूपचंद नंदा भी इस भाव को पहचान गए| फिर तो रूपचंद नंदा ने राघवदास से पूछा- "तुम कितने पढ़े हुए हो? यदि तुम पढ़े हो तो मेरी समस्या का समाधान करो|" श्रीमद् भागवत दशमस्कंध पूर्वार्द में ४६ अध्यास हैं और उत्तरार्ध में ४१ अध्याय हैं| पूर्वार्द्ध अर्थात भागवत का आधा भाग किस कारण से इसे माना जावे । राघवदास कुछ भी उत्तर नहीं दे सका । इस पर रूपचंद नंदा ने कहा - " तुम अपने मन में योग्यता तो चाचाजी से अधिक मानते हो|" इस पर राघवदास ने अपराध क्षमा कराया । सो रूपचंद नंदा श्रीगुसांईजी के मन की बात और वैष्णवों के मन की बात को तुरन्त जान जाते थे ।
(प्रसंग-)
एक बार श्रीगुसांईजी आगरा पधारे । वहाँ श्रीगुसांईजी के मन में विचार आया । यदि ऐसा घोड़ा हो जो चार घड़ी में श्रीनाथजी के दर्शन करा लावे । रूपचंद नंदा ने श्रीगुसांईजी के मन की बात जानकर वैसा ही त्वरित गामी घोड़ा ला दिया । श्रीगुसांईजी उस घोड़े पर सवार होकर श्रीनाथजी के दर्शन करके पुन: आगरा पधार गए । श्रीगुसांईजी ने रूपचंदनंदा से कहा - " तू कुछ माँग ले ।" रूपचंद नंदा ने कहा - " महाराज,यदि आप आगरा पधारो तो  मेरे घर के अलावा कहीं भी नहीं उतरेंगे । मैं तो आपसे यही वरदान चाहता हूँ । श्रीगुसांईजी के प्रति इनके मन में बड़ी भारी आस्था थी| जब श्रीगुसांईजी श्रीगोकुल में विराजते तो जो सामग्री की इच्छा (चाहत) श्रीगुसांईजी करते रूपचंद नंदा उस सामग्री को आगरा से लेकर श्रीगुसांईजी के लिए भिजवा देते थे । रूपचंद नंदा का मन श्रीगुसांईजी के स्वरूप में तदरूप हो गया था । ऐसे भगवदीय कृपा पत्रों की अनेक कथाएँ हैं । उनकी चर्चा कहाँ तक की जाए ।

| जय श्री कृष्णा |
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