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वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव १३३)श्रीगुसांईजी
के सेवक रूपचंद नंदा की वार्ता
(प्रसंग-१)
रूपचंद
नंदा आगरा के निवासी थे । वे
एक बार श्रीगोकुल में आए । उस
समय श्रीगुसांईजी के पास
राघवदास ब्राह्मण श्रीसुबोधिनीजी
पढ़ रहे थे । पढ़ने समय ही राघवदास
के मन में एक विचार आया कि चाचा
हरिवंशजी परदेश में जाते है
और बहुत मात्रा में भेंट लेकर
आते हैं|
वे
तो इतने अधिक पढें लिखे भी
नहीं हैं|
यदि
मेरा जैसा पण्डित उनके स्थान
पर जावे तो उनसे कई गुनी अधिक
भेंट ला सकता है|
उनके
मन की बात को श्रीगुसांईजी
जान गए तथा रूपचंद नंदा भी इस
भाव को पहचान गए|
फिर
तो रूपचंद नंदा ने राघवदास
से पूछा-
"तुम
कितने पढ़े हुए हो?
यदि
तुम पढ़े हो तो मेरी समस्या का
समाधान करो|"
श्रीमद्
भागवत दशमस्कंध पूर्वार्द
में ४६ अध्यास हैं और उत्तरार्ध
में ४१ अध्याय हैं|
पूर्वार्द्ध
अर्थात भागवत का आधा भाग किस
कारण से इसे माना जावे । राघवदास
कुछ भी उत्तर नहीं दे सका । इस
पर रूपचंद नंदा ने कहा -
" तुम
अपने मन में योग्यता तो चाचाजी
से अधिक मानते हो|"
इस
पर राघवदास ने अपराध क्षमा
कराया । सो रूपचंद नंदा
श्रीगुसांईजी के मन की बात
और वैष्णवों के मन की बात को
तुरन्त जान जाते थे ।
(प्रसंग-२)
एक
बार श्रीगुसांईजी आगरा पधारे
। वहाँ श्रीगुसांईजी के मन
में विचार आया । यदि ऐसा घोड़ा
हो जो चार घड़ी में श्रीनाथजी
के दर्शन करा लावे । रूपचंद
नंदा ने श्रीगुसांईजी के मन
की बात जानकर वैसा ही त्वरित
गामी घोड़ा ला दिया । श्रीगुसांईजी
उस घोड़े पर सवार होकर श्रीनाथजी
के दर्शन करके पुन:
आगरा
पधार गए । श्रीगुसांईजी ने
रूपचंदनंदा से कहा -
" तू
कुछ माँग ले ।"
रूपचंद
नंदा ने कहा -
" महाराज,यदि
आप आगरा पधारो तो मेरे घर
के अलावा कहीं भी नहीं उतरेंगे
। मैं तो आपसे यही वरदान चाहता
हूँ । श्रीगुसांईजी के प्रति
इनके मन में बड़ी भारी आस्था
थी| जब
श्रीगुसांईजी श्रीगोकुल में
विराजते तो जो सामग्री की
इच्छा (चाहत)
श्रीगुसांईजी
करते रूपचंद नंदा उस सामग्री
को आगरा से लेकर श्रीगुसांईजी
के लिए भिजवा देते थे । रूपचंद
नंदा का मन श्रीगुसांईजी के
स्वरूप में तदरूप हो गया था
। ऐसे भगवदीय कृपा पत्रों की
अनेक कथाएँ हैं । उनकी चर्चा
कहाँ तक की जाए ।
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जय
श्री कृष्णा |
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