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वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव
१२५)श्रीगुसांईजी
की सेवक मान कुंवर बाई की वार्ता
एक
सेठ की बेटी मान कुँवरी दस
वर्ष की अवस्था में विधवा हो
गई । थोड़े ही दिनों के पश्चात्
श्रीगुसांईजी गुजरात पधारे
तो इस मान कुँवरी को ब्रह्म
सम्बंध कराया इसके यहां
श्रीमदनमोहनजी की सेवा पधराई
। यह श्रीठाकुरजी की सेवा करने
लगी । इस बाई ने श्रीमदनमोहनजी
की जीवन पर्यन्त सेवा की ।
इसने श्रीमदनमोहन जी के स्वरूप
के अलावा अन्य किसी स्वरूप
के दर्शन भी नहीं किए । यह सेवा
छोड़कर कभी घर से बाहर भी नहीं
गई । जैसे श्रीमदनमोहनजी है
वैसे सभी के यहाँ श्रीठाकुरजी
का स्वरूप होगा,यह
मन में निश्चय करके रखती थी|
जब
मानकुँवरी साठ वर्ष की हुई
तो इसके पिता का देवलोक हो गया
। अत:
वह
मनुष्य रखकर सेवा करने लगी ।
एक दिन एक विरक्त वैष्णव उस
गाँव में आया । शीतकाल का समय
था । मानकुँवरी के घर आकर ठहरा
था| उसने
अपने श्रीठाकुरजी की झाँँपी
मानकुँवरी को दी और स्वयं
तालाब पर स्नान करने चला गया
। मानकुँवर बाई ने श्रीठाकुरजी
को जगाया,उसकी
झाँँपी में श्रीठाकुरजी
बालकृष्णजी थे । उस बाई ने
श्रीमदनमोहनजी के अलावा अन्य
किसी भी स्वरूप के दर्शन नहीं
किये थे । वह विचार करने लगी
। कि ठण्ड के कारण श्रीठाकुरजी
सिकुड़ गए है,
ठण्ड
बहुत पड़ती है|
इस
वैष्णव ने श्रीठाकुरजी के
लिए ठण्ड का कोई उपचार नहीं
रखा है । उस बाई के नेत्रों से
जल प्रवाहित होने लगा । उसके
मन में बहुत ताप हुआ,वह
अंगठी लेकर बैठ गई । तेल में
अनेक प्रकार की गरम औषध डालकर
तेल को गर्म किया और सुहाते
-
सुहाते
तेल से श्रीठाकुरजी के हाथ
पैर मींढने लगी । उसने समजा
श्रीठाकुरजी को बहुत श्रम
हुआ है । उसने श्रम के लिए
श्रीठाकुरजी से क्षमा याचना
की । उसकी प्रार्थना सुनकर
तथा उसके शुद्धभाव को देखकर
श्रीबालकृष्ण भगवान श्रीमदनमोहनजी
के स्वरूप में हो गए । डोकरी
बाई बहुत प्रसन्न हुई । डोकरी
ने रसोई करके भोग रखा,उस
वैष्णव ने आकर दर्शन किए ।
श्रीठाकुरजी को शीत के उपचार
के रूप में रजाई ओढा रखी थी
अत:
वह
वैष्णव समज बहिन सका कि यह कौन
से श्रीठाकुरजी हैं वह वैष्णव
वहाँ दस-पन्द्रह
दिन रहा । वह जाने लगा तो बाई
ने आग्रह किया कि शीत पड़ रही
है श्रीठाकुरजी को श्रम होता
है अत:
शीतकाल
यहीं व्यतीत करो । फाल्गुन
में चले जाना । उसने अपने
श्रीठाकुरजी की जांपी को
सँभाला । श्रीबालकृष्ण के
स्थान पर श्रीमदनमोहनजी के
स्वरूप को देखकर वैष्णव ने
मान कुँवरी बाई से जगडा किया,
वह
बोला -
"तुमने
मेरे श्रीठाकुरजी को बदल लिया
है ।"
मानकुँवर
ने बहुत समजाया । अन्तत:जगडा
श्रीगोकुल तक पहुँचा । दोनों
जने श्रीगोकुल में श्रीगुसांईजी
के समक्ष उपस्थित हुए ।
श्रीगुसांईजी ने दोनों की
बातें सुनी । श्रीगुसांईजी
ने जांपी लेकर श्रीठाकुरजी
को देखा । श्रीठाकुरजी ने
श्रीगुसांईजी से कहा -
"मैं
डोकरी के भाव के कारण बालकृष्ण
से मदन मोहन हुआ हूँ ।"
इस
डोकरी ने मेरे मदन मोहन स्वरूप
के अलावा अन्य किसी स्वरूप
के दर्शन ही नहीं किए हैं अत:
इसके
भाव में कोई विक्षेप न हो,
मैं
श्रीमदनमोहन के स्वरूप में
अवस्थित हूँ । श्रीगुसांईजी
ने उनका झगडा निपटा दिया|
उन्होंने
कहा -
" ये
ही तेरे श्रीठाकुरजी हैं ।"
डोकरी
ने उससे कहा -
" तू
श्रीठाकुरजी को ठण्ड मारता
है, ऐसे
लोगों को श्रीठाकुरजी पधरा
कर नहीं दिये जाने चाहिए ।"
श्रीगुसांईजी
डोकरी के शुद्ध भाव को देखकर
हँसने लगे । वह वैष्णव उस डोकरी
के पैरों में पड़ गया । उसने
कहा -
" मैं
अब कहीं नहीं जाऊँगा,तुम्हारे
यहाँ टहल करूँगा ।"
वह
मानकुँवरीबाई श्रीयमुनाजी
का जल पान करके श्रीनाथजी के
दर्शन करने गई । श्रीनाथजी
के दर्शन करके अपने देश में
जाकर श्रीठाकुरजी की सेवा
करने लगी । वह मानकुँवर
श्रीगुसांईजी की इसी कृपा
पात्र थी |
|
जय
श्री कृष्णा |
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