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वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव १२८)श्रीगुसांईजी
की सेवक बीरबल की बेटी की वार्ता
एक
दिन श्रीगुसांईजी आगरा पधारे
थे । बीरबल के बेटी ने उनके
दर्शन किए । उसे साक्षाट पूर्ण
पुरूषोत्तम के दर्शन हुए ।
तब बीरबल की बेटी श्रीगुसांईजी
की सेवक हुई और नित्य कथा सुनने
के लिए श्रीगुसांईजी के पास
जाती थी । कथा में जो भी सुनती
थी,वह
मन में रखती थी,एक
अक्षर भी नहीं भूलती थी|
वह
रात दिन उसी कथा का अनुभव करती
रहती थी । एक दिन बीरबल से
बादशाह ने पूछा -
" साहब
से मिलना कैसे होता है?
यह
निश्चय करके बताओ ।"
बीरबल
ने सारे पण्डित और महन्तों
से पूछा,लेकिन
उनकी समज में उत्तर नहीं आया
। प्रश्न का उत्तर ण पाकर बीरबल
को डर सा लगा,
ण
जाने बादशाह क्या कहने लग पड़े
। बीरबल की बेटी ने कहा -
" इस
प्रश्न का उत्तर श्रीगुसांईजी
देंगे । बीरबल श्रीगोकुल आए
और श्रीगुसांईजी से विनती की
। shश्रीगुसांईजी
ने बीरबल से कहा -
"इस
प्रश्न का उत्तर बादशाह को
एकान्त में दिया जाएगा ।"
बीरबल
ने बादशाह से कहा -
" आपके
प्रश्न का उत्तर श्रीगुसांईजी
आपको एकान्त में देंगे|"
तब
तो बादशाह श्रीगोकुल आए उनके
साथ बीरबल भी आया । बीरबल
श्रीगुसांईजी को बादशाह के
डेरा पर साथ लेकर गए । बादशाह
ने एकान्त में श्रीगुसांईजी
से पूछा -
" साहब
कैसे मिलते हैं,कोई
उपाय-साधन
बताओ ।"
श्रीगुसांईजी
ने लौकिक रीति से उत्तर दिया
-
" जैसे
तुम हमको मिले हो,
ऐसे
ही साहब मिलते है ।"
बादशाह
ने कहा -
" इसे
स्पष्ट समजाकर बताओ ।"
श्रीगुसांईजी
ने कहा -
" हम
हजारों उपाय करे तो भी तुमसे
मिलना बहुत कठिन होता है और
यदि तुम मिलना चाहो तो एक घड़ी
भी नहीं लगती है । तुम्हारे
चाहने पर तुम हमें सहज ही मिल
सकता है ,
यदि
साहब चाहे तो शीध जीव को अपना
कर लेते है । जीव के हाथ में
कुछ भी नहीं है । साहब की मर्जी
होतो अलग एक क्षण भी नहीं लगती
है,
वह
मिल जाता है । यह सुनकर बादशाह
बहुत प्रसन्न हुए । बादशाह
ने श्रीगुसांईजी को दण्डवत
की और विनती की,
कि
मेरी और से कुछ अंगीकार करो
। श्रीगुसांईजी ने कहा -
" हमें
ऐसी सवारी दो,जो
एक घंटे में हमें गोपालपुर
पहुँचा दे ।"
बादशाह
ने श्रीगुसांईजी को ऐसा घोड़ा
भेंट किया जो एक घंटा में दश
कोश दूरी पार कर लेता था । धोड़े
के खर्च के लिए श्रीगोकुल और
गोपालपुर में दो गाँव दिए ।
उस घोड़े पर बैठकर श्रीगुसांईजी
गोपालपुर आए और फिर श्रीगोकुल
पधारे । घोड़ा की बात श्रीगोपालदासजी
ने सप्तम वल्लभाखयान में कही
है -
"तुरंग
चाले वायु वेगें,उतावला
जाने नौका चाली सिंधु तरवा
।"
-- ऐसी
रीति से गोपालदास ने वर्णन
किया है । वह बीरबल की बेटी
ऐसी कृपा पात्र थी श्रीगुसांईजी
के ऊपर ऐसा विश्वास था,
इनकी
वार्ता कहाँ तक कहें ।
|
जय
श्री कृष्णा |
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