२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव - १) श्री
गुसाईंजी के सेवक कृष्णदास
की वार्ता
कृष्णदास
एक म्लेच्छ शासक के क्षेत्र
में अधिकारी थे जो भी वैष्णव
आता था , उसको
व्यापार के लिए रुपया उधार
देते और उससे खत लिखता लेते|
इस प्रकार
उनसे वे व्यापर करते थे । इस
प्रकार के वयवहार से तीस हजार
रुपया शेष रह गए । अत:
म्लेच्छ
ने कृष्णदास को बन्दीखाने
में रख दिया । कृष्णदास के
पुरोहित ने उन वैष्णवो के
खातों को म्लेच्छ को देकर
स्थिति को सप्षट करना चाहा
तो कृष्णदास ने विचार किया -
" इससे
तो इन सभी वैष्णवो को कष्ट हो
सकता है । अच्छा है ;
मै अकेला
ही कष्ट भोग लूँ ।''
अत :
कृष्णदास
ने उन खतो को जलवा दिया । म्लेच्छ
शासक के यहाँ कृष्णदास की
पेशी हुई । उसने पूछा -
'' तुम्हारे
पास किसी को रूपये देने की
बाक़ियत हो तो बताओ ।''
कृष्णदास
ने कहा - " हमारे
पास कुछ भी बाक़ियत नहीं है ।''
म्लेच्छ
को सम्पूर्ण स्थिति की जानकारी
हो चुकी थी इसलिए म्लेच्छ ने
कृष्णदास को "
सिरोपा
" देकर
परगने में भेज दिया ताकि वहाँ
से रुपया प्राप्त कर क्षतिपूर्ति
की जा सके । कृष्णदास ने धीरे
धीरे सब रूपये चूका दिए । वे
कृष्णदास ऐसे कृपापात्र भक्त
थे , जिन्होंने
स्व्यं को बंदीखाने में डाला
जाने पर भी वैष्णवों को कष्ट
नहीं होने दिया । इस सतोगुण
के प्रभाव से म्लेच्छ की बुद्धि
को प्रभु ने परिवर्तित कर दिया
।
| जय श्री कृष्णा |
jai shree nath ji
ReplyDeleteJai Shri Krishna
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