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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
-
५
)
श्री
गुसाईंजी के सेवक भूधरदास की
वार्ता
भूधरदास
वैष्णव बाराडी में रहते थे ।
श्रीगुसाईजी जब द्वारिका
पधारे तब भूधरदास उनके सेवक
हुए । वे श्रीगुसाईजी के साथ
द्वारिका भी गये थे । रास्ते
में एक मुकाम हुआ, वहाँ
भूधरदास के मन में विचार आया
की श्रीगुसाईजी कोई माहात्मय
व् चमत्कार दिखावें तो अच्छा
रहे । इतने में ही बादल की घटा
उमड़ी । चारों और गर्जना होने
लगी । उस समय तक रसोई आधी बन
पाई थी । श्रीगुसाईजी ने बादल
को आज्ञा की - " तुम
यहाँ मत बरसना । हमारे डेरा
को छोड़कर बरसना । उसी समय वर्षा
होने लगी । लेकिन श्रीगुसाईजी
के डेरा से सौ - सौ
हाथ दूर रहकर घनघोर वर्षा हुई
। ऐसी वर्षा हुई की तालाबों
में बारह महीना तक के लिए पानी
इक्ट्ठा हो गया । नदियों में बाढ़ सी आ गई । लेकिन श्रीगुसाईजी
के डेरा में एक बूंद भी नहीं
आई । चारों और की वसुधा जल मयी
हो गई । भूधर ने उनका चमत्कार
देखा और माहात्मय समझा तथा उसने जीवन पर्यन्त श्रीगुसाईजी
की सेवा करने का संकल्प ले
लिया । श्रीगुसाईजी श्रीगोकुल
में आ गए और भूधरदास को श्रीनाथजी
की सेवा में रख दिया । थोड़े ही
दिनों में श्रीनाथजी भूधरदास
से बोलने लग गए । भूधरदास
श्रीगुसाईजी के ऐसे कृपा पात्र
थे ।
।जय श्री
कृष्ण।
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