Monday, February 2, 2015

(वैष्णव - ६ ) श्री गुसाईंजी के सेवक खुशालदास की वार्ता







२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव - ) श्री गुसाईंजी के सेवक खुशालदास की वार्ता 

  
वैष्णव खुशालदास ने बहुत धन कमाकर संग्रह किया । वह सब धन श्रीगुसाईजी के पास ले गया । उसी समय अपने आने की श्रीगुसाईजी को खबर कराई । श्रीगुसाईजी उस समय श्रीनाथजी का श्रृंगार कर रहे थे अत: चुपकर रहे । सेवा से पहुँचकर राजभोग पीछे बाहर पधारे तो खुशालदास ने श्रीगुसाईजी के दर्शन किए और तीन लाख रुपया की द्रव्य सामग्री लाया था ; वह सब उनके लिए समर्पण हेतु सामने रखी । श्रीगुसाईजी ने खुशालदास से कहा - " तेरा यह धन काम का नहीं है तू इसे वापस ले जा । तेरी इच्छा हो वैसा कर । " तब खुशालदास ने पूछा - " महाराज , मेरा क्या अपराध है , जो मेरा धन काम का नहीं है ।" श्रीगुसाईजी ने कहा - " तेरा अपराध कुछ भी नहीं है , लेकिन तेरा यह धन उचित नहीं है । हम श्रृंगार कर रहे थे , उसी समय इस धन की खबर पाई थी । हमारे चित में दुविधा ( दो चित ) हो गई । धन के नाम सुनते ही हमारा चित सेवा से अलग हो गया । यदि यही द्रव्य भण्डार में रहेगा तो क्या अनर्थ नहीं करेगा ? यह द्रव्य हमें नहीं चाहिए ।" उस खुशालदास ने सोचा - " तब तो यह धन मेरी बुद्धि को भी भ्रष्ट करेगा अत : इस धन को लूटा देना चाहिए ।" उसने अपने विचार को चरितार्थ कर उस धन को लुटा दिया । वह खुशालदास श्रीगुसाईजी पर ऐसा विश्वास करता था । वह श्रीगुसाईजी का ऐसा कृपा पात्र था जिसने श्रीगुसाईजी द्वारा तिरस्कृत द्रव्य में से एक पैसा भी अपने काम में नहीं लिया ।

।जय श्री कृष्ण।

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