Thursday, February 26, 2015

Shri Shrigusaiji Ka Sevak Dharmdas Ki Varta



२५२ वैष्णवों की वार्ता  
(वैष्णव - ११ ) श्री श्रीगुसांईजी का सेवक धर्मदास ( अडीगवासी ) की वार्ता 


धर्मदास आँखों से नहीं देख पाता था । श्रीगुसांईजी नित्य प्रति घोड़े पर दो घडी में श्रीगोकुल से श्रीजी द्धार पधारते थे । इस प्रकार आवागमन नित्य होता था । एक दिन श्रीगुसांईजी अड़ीग से बाहर निकले तो रास्ते में अंधा ब्राह्मण खड़ा था । घोडा उसके ऊपर से जाने लगा तो श्रीगुसांईजी ने घोड़े को थामा । वह ब्राह्मण घबड़ा गया । रास्ते में इधर - उधर कहीं भी नहीं जा सका । तब श्रीगुसांईजी को बहुत दया आई । श्रीगुसांईजी घोड़े से नीचे उतरे ,उसके नेत्रों में जल के छींटे लगाए तो उसके नेत्र खुल गए । श्रीगुसांईजी तो घोड़े पर सवार होकर गोपालपुर पधारे , वह ब्राह्मण भी पीछे ही पीछे गोपालपुर पहुंच गया और जाकर श्रीगुसांईजी के दर्शन किए । उसने विनती की - " महाराज , आज रास्ते में आपने मुझे नेत्र दिये है, मै वही ब्राह्मण हुँ , मुझे अपनी शरण में ले लो । श्रीगुसांईजी ने दूसरे दिन उस ब्राह्मण को नाम निवेदन कराया । श्रीनाथजी के दर्शन कराये । श्रीगुसांईजी ने कृपा करके उन्हें ग्रन्थ पढ़ाये । जब तक उसकी देह रही तब तक वह श्रीगुसांईजी के पास ही रहा । कुछ दिन पीछे उसकी देह छूटी तो श्रीगुसांईजी ने अपने श्रीमुख से कहा - " धर्मदास बहुत अच्छा वैष्णव था ।"
।जय श्री कृष्ण।
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