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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
-
१२
)
श्री
श्रीगुसांईजी के सेवक जो
राजनगर में रहते की वार्ता
राजनगर निवासी
वैष्णव का नियम था -
" दो चार
वैष्णवों को प्रसाद लिवाकर
स्वयं प्रसाद लेता था । यदि
कोई वैष्णव प्रसाद लेने नहीं
आता था तो दोनों स्त्री पुरुष
प्रसाद नहीं लेते थे । एक बार
यह वैष्णव परदेश गया और अपनी
स्त्री को कह गया था कि वैष्णवों
को नित्य ही अवश्य प्रसाद
लिवाया करना । जितने वैष्णवों
को प्रसाद लिवाए ,
उतने ही
पैसे इस गागर में डालते जाना
। उस स्त्री ने ऐसा ही किया ।
कुछ दिन बाद वैष्णव परदेश से
लौटा , तो
उसने गागर के पैसे गिने । उसमें
पाँच मोहर देखने को मिली ।
वैष्णव ने अपनी पत्नी से मोहरों
के बारे में पूछा तो उसने गागर
में केवल पैसे डालने की बात
को स्वीकार किया । मोहर उसमें
नहीं डाली थी । कुछ दिन बाद
श्रीगुसांईजी राजनगर पधारे
तो उस वैष्णव ने उनको सारा
वृतान्त सुनाया । श्रीगुसांईजी
उसकी शंका का समाधान करते हुए
उसे समझाया -
" जिन
वैष्णवों की तुम्हारी पत्नी
ने प्रसाद लिवाया है ,
उनमें
पाँच भगवदीय तादृशी आए होंगे
। अत : पैसे
के स्थान पर पाँच रत्न हो गए
। अत : जैसे
भी बने प्रत्येक वैष्णव को
वैष्णवों का आदर करना चाहिए
।" श्रीगुसांईजी
की आज्ञा को सुनकर वैष्णव बहुत
प्रसन्न हुआ । वह वैष्णव
श्रीगुसांईजी का ऐसा कृपा
पात्र था जिसका रत्नों के
द्रारा वैष्णवों के स्वरूप
का ज्ञान श्रीठाकुरजी ने कराया
|
।जय श्री
कृष्ण।
please publish all vartas in common language English
ReplyDeleteWe will try and get it translated in English. Jai Shri Krishna.
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