Thursday, March 12, 2015

Shri Gusaiji Ke Sevak Gopinath Das Gval Ki Varta

२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव - १४ )श्रीगुसांईजी के सेवक गोपीनाथ दास ग्वाल की वार्ता



गोपीनाथ दास ग्वाल वन में गाय- भैंस चराते थे| एक दिन गोपीनाथ दास को वन में भूख लगी| श्रीनाथजी ने राजभोग की सामग्री में से आठ लड्डू लेकर वन में आकर गोपीनाथ दास ग्वाल को दिए| गोपीनाथ दास ने मन में विचार किया -" बिना श्रीगुसांईजी की आज्ञा के लड्डू खाना उचित नहीं है|" उस ग्वाल ने लाकर वे लड्डू श्रीगुसांईजी को दिए और कहा -" श्रीनाथजी ने ये लड्डू हमें लाकर दिए हैं|" श्रीगुसांईजी ने उसे आज्ञा की -" श्रीनाथजी ने तुम्हें लड्डू दिए हैं, इन्हें तुम अवश्य ही खाओ|" गोपीनाथ दास ग्वाल श्रीगुसांईजी की आज्ञा के बिना कुछ भी नहीं करते थे| एक दिन वन में श्रीनाथजी ने गोपालदास भीतरिया से कहा - " मुझे भूख लगी है|" तत्काल गोपालदास भीतरिया ने श्रीगुसांईजी के पास पहुंचकर उनसे निवेदन कर दिया| तब श्रीगुसांईजी सब शीतल सामग्री तैयार करके वन में पधारे । धूप में तीक्ष्ण दाहकता का अनुभव करते हुए गोपालदास ग्वाल ने श्रीगुसांईजी से विनती की -" महाराज, ऐसी धाम में क्यों पधारे हो?" श्रीनाथजी तो बालक हैं, आप धाम के शीतल होने पर पधारते तो अच्छा रहता । किन्तु श्रीगुसांईजी ने तो तीक्ष्णधाम में ही वन में पहुंच कर सामग्री आरोगाई थी | गोपीनाथदास ग्वाल ने श्रीनाथजी से विनती की- "महाराज आपने ऐसी धाम में श्रीगुसांईजी से इतना श्रम क्यों कराया है?" आप आज्ञा करते तो बहुत सामग्री लेकर सेवक उपस्थित हो जाते| इस पर श्रीनाथजी ने आज्ञा की - " गोपालदास , इनके हाथ के बिना मुझे दूसरे के हाथ से कुछ भी अच्छा नहीं लगता है|" इनके कहे बिना दूसरे के हाथ से आरोगता भी नहीं हूँ|" यह सुनकर गोपालदास चुप हो गए| इसी भाव से श्रीरघुनाथजी ने श्रीगुसांईजी का नाम " नाम रत्नाख्य ग्रन्थ"में -" तन्निमन्त्रण भोजक:", ऐसा वर्णन किया है| वे गोपालदास ग्वाल ऐसे कृपा पात्र थे|

।जय श्री कृष्ण। 
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