Monday, March 23, 2015

Shri Gusaiji Ke Sevak Ek Vaishnav Ki Beti Ki Varta

२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव - १७ )श्रीगुसांईजी के सेवक एक वैष्णव की बेटी की वार्ता

वह वैष्णव की बेटी बचपन में ही श्रीगुसांईजी की सेवक हुई और श्रीठाकुरजी पधरा कर सेवा करने लगी| वह बचपन से ही भगवद धर्मो का पालन करती थी| श्रीमद भागवत में कहा है-"कौमार आचरते प्राज्ञो धर्मान् भागवतानिह " इसका आशय है-" भगवदधर्मो का आचरण बाल अवस्था से ही करे ।" वह वैष्णव की बेटी श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थी । उसका विवाह रामोपासको के यहाँ हुआ । अतः रामोपासक पति से वह बाई भाषण नहीं करती थी । क्योकि उसका पति कहता था-" हमारे राम तो राजा है, वे राजलीला करते है|" वह बाई कहती -"हमारे कृष्ण तो बाल -लीला , दान लीला, रास लीला, चीर लीला , चोर लीला, मानलीला, वनलीला, जन्मलीला, विहरलीला, आदि अनेक लीलाओ को एक कालावच्छिन्न करते है| " उसका पति कहता -"हमारे राम राजा है अतः उन्हें इन लीलाओ की आवश्यकता ही नहीं है|" इस प्रकार दोनों में झगड़ा चलता था । श्रीठाकुरजी आकर प्रतिदिन उनका झगड़ा सुलझाते थे| वे कहते - "सर्वत्र मै हूँ, तुम दोनों मेरे में अभेद जानो, मेरे में कोई भेद नहीं है । " उस स्वरूप में उस बाई को श्रीकृष्ण दिखाई देते थे और पति को श्रीराम के दर्शन होते थे| इस प्रकार स्वरूप चर्चा में उनका सारा जीवन बीत गया, उनको सांसारिक व्यव्हार याद ही नहीं आया| सो वह वैष्णव की बेटी श्रीगुसांईजी की ऐसी कृपा पात्र भगवदीय थी|


।जय श्री कृष्ण। 
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