२५२
वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
-
१७
)श्रीगुसांईजी
के सेवक एक वैष्णव की बेटी की
वार्ता
वह वैष्णव
की बेटी बचपन में ही श्रीगुसांईजी
की सेवक हुई और श्रीठाकुरजी
पधरा कर सेवा करने लगी|
वह बचपन
से ही भगवद धर्मो का पालन करती
थी|
श्रीमद
भागवत में कहा है-"कौमार
आचरते प्राज्ञो धर्मान्
भागवतानिह "
इसका
आशय है-"
भगवदधर्मो
का आचरण बाल अवस्था से ही करे
।"
वह
वैष्णव की बेटी श्रीकृष्ण की
अनन्य भक्त थी । उसका विवाह
रामोपासको के यहाँ हुआ । अतः
रामोपासक पति से वह बाई भाषण
नहीं करती थी । क्योकि उसका
पति कहता था-"
हमारे
राम तो राजा है,
वे
राजलीला करते है|"
वह बाई
कहती -"हमारे
कृष्ण तो बाल -लीला
,
दान
लीला,
रास
लीला,
चीर
लीला ,
चोर
लीला,
मानलीला,
वनलीला,
जन्मलीला,
विहरलीला,
आदि
अनेक लीलाओ को एक कालावच्छिन्न
करते है|
" उसका
पति कहता -"हमारे
राम राजा है अतः उन्हें इन
लीलाओ की आवश्यकता ही नहीं
है|"
इस
प्रकार दोनों में झगड़ा चलता
था । श्रीठाकुरजी आकर प्रतिदिन
उनका झगड़ा सुलझाते थे|
वे कहते
-
"सर्वत्र
मै हूँ,
तुम
दोनों मेरे में अभेद जानो,
मेरे
में कोई भेद नहीं है । "
उस
स्वरूप में उस बाई को श्रीकृष्ण
दिखाई देते थे और पति को श्रीराम
के दर्शन होते थे|
इस
प्रकार स्वरूप चर्चा में उनका
सारा जीवन बीत गया,
उनको
सांसारिक व्यव्हार याद ही
नहीं आया|
सो वह
वैष्णव की बेटी श्रीगुसांईजी
की ऐसी कृपा पात्र भगवदीय थी|
।जय
श्री कृष्ण।
0 comments:
Post a Comment