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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
-
१५
)श्रीगुसांईजी
की सेवक एक ब्रजवासी की बहू
की वार्ता
जिस दिन वह
बहू श्वसुर गृह में आई ,
उसी
दिन श्वसुर गृह से एक भैंस खो
गई|
सभी
घर वाले कहने लगे -"बहू
का पाँव घर में अच्छा नहीं पड़ा
है :
जिस
दिन को यह आई है,
उसी
दिन हमारी भैंस खो गई|"
बहू
के मन में बहुत चिन्ता व्याप्त
हुई अतः उसने श्रीनाथीजी के
लिए सवासेर माखन की मनौती की|
इसके
पॉँच -
सात
दिन बाद ही भैंस पुनः प्राप्त
हो गई। वह बहू भैंस के दही को
बिलौने लगी,
प्रति
दिन एक छटांक माखन चुराने लगी|
दूसरे
दिन उस माखन को ताजा में मिलाकर
ताजा निकाल लेती थी|
इस
प्रकार करते करते जब सवा सेर
माखन पूरा हुआ तो श्रीनाथजी
को आरोगवाने के लिए चली|
घर से
निकली तो उसे विचार हुआ -
" मुझे
कोई देख लेगा तो क्या कहेगा?"
यह
विचार आते ही उसकी यह गति हो
गई न तो आगे ही बढ़ा जाएं और न
पीछे ही आया जाए ।"
श्रीनाथजी
ने जब उसे इस प्रकार चिन्तातुर
देखा तो श्रीनाथजी स्वयं
पधारे,
और उसका
माखन लेकर स्वयं ही आरोगे ।
वह बहू ऐसी कृपा पात्र थी|
।जय
श्री कृष्ण।
This is great! But is this blog possible in English as well??
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