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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
-
१६
)श्रीगुसांईजी
की सेवक एक कूंजरी की वार्ता
एक दिन
श्रीगुसांईजी गोपालपुर से
श्रीगोकुल पधार रहे थे|
एक
कूंजरी प्यास से घबराकर पड़ी
थी|
श्रीगुसांईजी
ने खवास से कहा -"
ये कौन
पड़ी है?"
खवास
ने कहा -"प्यास
के कारण इस औरत के प्राण निकल
रहे है।"श्रीगुसांईजी
ने कहा -"
अपनी
झारी में से इसको जल पिलाओ।"
खवास
ने कहा -"
झारी
छू जाएगी।"
श्रीगुसांईजी
ने कहा -"
झारी
तो दूसरी भी आ जाएगी। परन्तु
इस औरत के प्राण तो बच जाएँगे
।"
यह
सुनकर खवास ने उस औरत को जल
पिलाया,
उसके
प्राण लौट आए । वह चैतन्य हो
गई । वह कूंजरी अपना समस्त
द्रव्य लेकर श्रीगोकुल में
आ गई । वह दिन में तो दुकान
लगाकर बैठती थी और रात्रि में
ग्राम से बाहर जा कर सो जाती
थी क्यों कि बादशाह अकबर के
आदेश से श्रीगोकुल में बड़ी
जात वाले को रहने की मनाई थी|
अतः
कूंजरी बाहर से उतम मेवा लाकर
गाँव में बेचती थी । जो कोई
मन्दिर में पहुँचाने के लिए
मेवा ख़रीदे तो उसे कम दाम खर्च
करने पड़ते थे । उसे मेवा कम
दाम में मिलती थी । वह समझती
थी कि मेरा द्रव्य इसी प्रकार
श्रीनाथजी को समर्पित हो सकता
है । इस प्रकार जीवनजीते हुए
उसका जीवन श्रीगोकुल में पूर्ण
हुआ|
जब
श्रीगुसांईजी श्रीयमुना के
घाटपर पधारते थे तो कूंजरी
को उनके दर्शन होते थे|
श्रीगुसांईजी
के दर्शन पूर्ण पुरषोत्तम
रूप में होते थे ,
इसी
लिए कूंजरी देह समाप्ति तक
श्रीगोकुल में रही । उसे
श्रीगुसांईजी के दर्शन पूर्ण
पुरषोत्तम रूप,
में
ही होते थे । सो वह कूंजरी
श्रीगुसांईजी की ऐसी कृपा
पात्र भगवदीय थी|
।जय
श्री कृष्ण।
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