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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
-
१३
)श्री
श्रीगुसांईजी के सेवक
ब्रह्मदास की वार्ता
ब्रह्मदास
गोपालपुर में रहते थे और ब्रज
में फिर कर मानसी सेवा करते
थे|
मानसी
सेवा इनके जीव को साक्षात्
हो गई थी|
राधा
कुण्ड पर कृष्ण चैतन्य नामक
एक सेवक रहता था,
वह
ब्रह्मदास का मित्र था|
वह
भी मानसी सेवा करता था|
सर्वदा
दूध पीकर ही रहता था|
थोड़े
दिनों के बाद उसने दूध पीना
छोड़ दिया और छाछ पीने लगा|
एक
दिन उस बंगाली ने मानसी सेवा
करके ,जब
मानसी में दूध भोग रखा तो
प्रसादी दूध मानसी में पिया।
जब प्रतिदिन की भाँती छाछ
पीने का समय हुआ तो उसके शिष्यों
ने हठ करके छाछ पिलाई। उन
शिष्यों को यह जानकारी नहीं
थी की इन्होंने मानसी में दूध
पिया है|
इस
व्यक्तिक्रम से उस बंगाली को
बुखार आ गया। ब्रह्मदास वैधक
भी जानते थे,
अत:
वे
बंगाली को देखने आए|
उन्होंने
उसने पूछा -"तुमने
दूध के ऊपर छाछ पी ली है क्या
?"
उस
बंगाली के शिष्य बोले-
"इन्होंने
दूध नहीं पिया है|"
तब
वह बंगाली अपने शिष्यों
से बोला-"तुम
लोगो को क्या पता है ?
हमने
जिस घर का दूध पिया है ,
ये
(ब्रह्मदास)
उसी
घर के रहने वाले है|
जब
हमने दूध पिया था,
तब
भी ये देख रहे थे|"
सो
वे ब्रह्मदास,
श्रीगुसांईजी
के ऐसे कृपा पात्र थे जो कोई
और मनुष्य मानसी सेवा करता
था तो वे अपनी मानसी सेवा के
प्रभाव से और श्रीगुसांईजी
की कृपा से सबकी मानसी सेवा
जान लेते थे|
।जय श्री
कृष्ण।
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