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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
-
७
)
श्री
गुसाईंजी के सेवक मधुसूदन
दास की वार्ता
एक समय मधु
सूदन दास श्रीगोकुल में आएं
यहाँ आकर उन्होंने श्रीगुसाईजी
के दर्शन किए । उनके मन में
विचार आया कि श्रीगुसाईजी का
सेवक हो जाऊँ । उन्होंने
श्रीगुसाईजी से एतदर्थ विनम्र
निवेदन किया । श्रीगुसाईजी
ने उन्हें स्नान करके आने के
लिए आज्ञा दी । उनके स्नान
करके लौटने पर श्रीगुसाईजी
ने उन्हें नाम निवेदन कराया
। इससे मधुसूदन दास का मन बहुत
प्रसन्न हुआ । उनका मन श्रीगोकुल
में रम गया अत : पृष्टि
मार्ग की रीति सीखने के लिए
श्रीगोकुल में रह गए । यहाँ
भिक्षावृति करके निर्वाह
करने लगे । एक दिन श्रीगुसाईजी
ने पूछा - " तुम
भिक्षा कहाँ माँगते हो ?"
उन्होंने
कहा - " सभी
के घर से माँगलाता हुँ ।"
श्रीगुसाईजी
ने कहा - " हमारे
सेवक गण , भटट
समुदाय और हमारे नौकर ,
इनके घर से
भिक्षा नहीं लेनी चाहिए ,
कयोंकि इनके
यहाँ तो हमारा ही द्रव्य जाता
है | देव
- द्रव्य
, गुरु
- द्रव्य
और विप्र - द्रव्य
, इनका
द्रव्य लेने से बुद्धि भ्रष्ट
होती है ।" अब
तो मधुसूदनदास इन घरों को
त्याग कर भिक्षा करने लगे ।
मधुसूदन दास के चित को स्थिर
देखर श्रीगुसाईजी ने उन्हें
पान - घर
की सेवा प्रदान की । मधुसूदन
दास का सेवा में ऐसा मन लगा कि
जन्मभर श्रीनाथजी की सेवा की
।
।जय श्री
कृष्ण।
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