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वैष्णवों की वार्ता
जमुनादास
वैष्णव दक्षिण में रहते थे ।
एक समय श्रीगुसांईजी दक्षिण
में पधारे थे । तब जमुनादास
श्रीगुसांईजी के सेवक हुए ।
वे श्रीठाकुरजी पधराकर सेवा
करने लगे । देश में म्लेच्छो
का राज था । जब चैत्र का महीना
आया, तब
एक माली गुलाब के फूल बेचने
आया । जमुनादास फूलों का बहुत
शौकीन था । उसने माली से पूछा
- " इन
फूलों का क्या लेगा ?"
उसने कहा
- " एक
रुपया लूंगा ।"
उसी समय
वहाँ एक तुर्क आया और उसने कहा
- " ये
फूल हमारे सरदार को चाहिए ।
मैं इनके दो रुपया दूँगा ।"
जमुनादास
ने पाँच कहे तो तुर्क ने दस
कहे । दोनों आपस में बढ़ने लगे
। जब एक लाख रुपया तक बढे तो
जमुनादास एक लाख रुपया देकर
फूल लाए । लाकर श्रीठाकुरजी
की पाग के ऊपर फूल धराया । उसी
समय श्रीगुसांईजी गिरिराजजी
के ऊपर श्रीनाथजी का श्रृंगार
कर रहे थे । श्रीनाथजी झुक झुक
जाते थे|
श्रीगुसांईजी
ने पूछा - "
बाबा,क्यों
झुक रहे हो ?"
तब
श्रीगोवर्धननाथजी ने श्रीगुसांईजी
से कहा - "
आपके सेवक
जमुनादास दक्षिण में रह रहे
है, उन्होंने
एक लाख रूपये का एक फूल लेकर
अपने श्रीठाकुरजी को धराया
है, सो
उसके भाव के बोझ से लचक लचक
जाता हुँ । उसका ऐसा भाव है
कि उसने मुझे एक फूल धराने के
लिए एक लाख रुपया खर्च किया
है । यह बात सुनकर श्रीगुसांईजी
बहुत प्रसन्न हुए । उस वैष्णव
जमुनादास को श्रीगुसांईजी
ने एक पत्र लिखा और एक ब्रजवासी
के हस्ते भिजवाया । उसमें लिखा
कि तुमने जो अमुक दिन श्रीठाकुरजी
को फूल धराया है ,
वह
श्रीगोवर्धननाथजी ने अंगीकार
कर लिया है । जब जमुनादास के
पास पत्र पहुंचा और उसने उसे
पढ़ा तो वह बहुत प्रसन्न हुआ
। उसने पांच लाख रुपया का हीरा
खरीद कर श्रीगुसांईजी के पास
भिजवाया । सो वह जमुनादास
श्रीगुसांईजी का ऐसा कृपापात्र
वैष्णव था । जमुनादास द्रव्य
को तुच्छ समझता था ।
।जय
श्री कृष्ण।
vaishnav shri Gusain ji ki varta bhaut achi or dil ko chone wali hain. hardik dhanywad for all vaishnav varta.
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