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वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव
१३५)श्रीगुसांईजी
के सेवक अलीखान पठान की वार्ता
(प्रसंग-१)
अलीखान
पठान ने पृथ्वीपति बादशाह से
तवीसा की हुकूमत प्राप्त की
और वे महावन में आकर रहे । वे
प्रतिदिन श्रीगुसांईजी के
पास कथा सुनने के लिए आते थे
। एक दिन उन्होंने कथा में
सुना -
श्लोक
-
"वृक्षे
वृक्षे वेणुधारी पत्रे पत्रे
चतुर्भुज:
।
यत्र
वृन्दावनं तत्र लक्षालक्ष
कथा कुत:
॥"
यह
श्लोक सुनकर उसने डोंडी पिटवाई
कि ब्रज के लता -
वृक्षों
के पत्ते कोई भी नहीं तोड़ेगा
। यदि तोड़ेगा तो वह दण्ड का
भागी होगा । एक दीन एक तेली
तेल लादकर जा रहा था,उसने
एक वृक्ष से डाली (शाखा)
तोड़
डाली,
तो
अलीखान ने उसका सारा तेल उस
वृक्ष में डलवा दिया । तब तो
सभी लोग भयभीत हो गए । ब्रज वन
लताओं का कोई पत्ता भी नहीं
तोड़ता था । विधर्मी भी ब्रज
की वन -
लताओं
का ऐसा सम्मान करते थे ।
श्रीगुसांईजी की कथा और श्लोकों
में ऐसा सच्चा भाव रखते थे ।
(प्रसंग-२)
एक
दिन एक चोर को पकड़कर अलीखान
के सम्मुख पेश किया गया । अलीखान
ने चोर से चोरी के बारे में
पूछा,तो
चोर ने कहा -
" हुजूर,ताते
(गर्म)
तेम
में हाथ डालने को तैयार हूँ
। mमेरी
बात की सचाई से ताता तेल ठन्डा
हो जाए तो मेरी बात को सच मानना
। अलीखान ने कहा -
" जो
परमेश्वर सत्य को सिद्ध करने
के लिए गर्म तेल को ठन्डा कर
सकता है|
वही
परमात्मा असत्य बोलने वाले
के लिए शीतल तेल को गर्म भी कर
सकता है|
अत:
तू
तो शीतल तेल में हाथ डालकर ही
सत्य बोल,यदि
तेरी बात जून्ठी होगी तो
परमात्मा ठन्डे तेल में गर्मी
भी पैदा कर सकता है । ठन्डा
तेल मँगाया गया,
उसमें
हाथ डाल कर चोर ने अपनी बात को
दुहराना शुरू किया । बात पूरी
होते होते उसके हाथ गर्मी से
जलने लगे । वे अलीखान परमेश्वर
के प्रति ऐसे आस्थावान थे ।
(प्रसंग-३)
अलीखान
के पास एक बहुत सुंदर घोड़ा था
जो एक घड़ी में छ:
कोस
चलता था । उस घोड़े को देखकर
श्रीगुसांईजी ने उस घोड़े की
बहुत सराहना की । अलीखान ने
उस घोड़े को श्रीगुसांईजी के
पास भेज दिया । श्रीगुसांईजी
ने घोड़े कोस्वीकार नहीं किया
। अलीखान ने समजा कि श्रीगुसांईजी
अपने सेवकों की सेवा ही स्वीकार
करते हैं अत:
अलीखान
श्रीगुसांईजी के सेवक हो गए
और श्रीगुसांईजी की सेवा करने
लगे । अलीखान की बेटी भी सेवक
बन कर सेवा करने लगी । अलीखान
की बेटी को श्रीठाकुरजी का
अनुभव होने लगा । दोनों संग
मिल कर नृत्य करते थे । एक दिन
अलीखान को बेटी के महल में
नृत्य का अनुभव हुआ । उसने
छिपकर देखा -
" श्रीठाकुरजी
स्वयं पधारे हैं और नृत्य कर
रहे हैं । यह देखकर अलीखान ने
बेटी की बहुत सराहना की ।
(प्रसंग-४)
श्रीगुसांईजी,
श्रीगोकुल
में नित्य कथा कहते थे । वैष्णव
प्रतिदिन कथा सुनाते थे ।
अलीखान भी प्रतिदिन कथा सुनने
आता था । श्रीगुसांईजी भी
अलीखान के आने पर कथा प्रारम्भ
करते थे । वैष्णवों के मन में
यह बात दढता से बैठ गई कि
श्रीगुसांईजी म्लेच्छ के आने
पर ही कथा प्रारम्भ करते हैं
वैष्णवों के मन की बात समज कर
श्रीगुसांईजी ने वैष्णवों
से कथा प्रारम्भ करने से पहले
पूछा-
"कल
के कथा प्रसंग से सम्बंधित
कथा कहनी है,
अत:
सन्दर्भ
के लिए कोई भी वैष्णव कल के
प्रसंग को नहीं बता सका तो
अलीखान ने हाथ जोड़कर विनती
की -
" आपकी
आज्ञा हो जाए तो मैं कल के
प्रसंग को दुहरा सकता हूँ ।
साथ ही आपकी आज्ञा होने पर
प्रथम दिन से अब तक की कथा भी
दिन प्रतिदिन के क्रम से बता
सकता हूँ|"
श्रीगुसांईजी
बहुत प्रसन्न हुए । इस प्रकार
अलीखान ध्यान पूर्वक कथा श्रवण
करते थे और कथा क्रम को अवधान
पूर्वक धारण भी करते थे । अलीखान
ऐसे कृपा पात्र थे कि एक अक्षर
भी नहीं भूलते थे ।
|
जय
श्री कृष्णा |
Thank you lord Shrinath Ji
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