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वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव
-१४०
)श्रीगुसांईजी
के सेवक एक खण्डन ब्राह्मण
की वार्ता
यह
खण्डन ब्राह्मण नन्द गाँव
में रहता था। वह ब्राह्मण
शास्त्रज्ञ था। पृथ्वी पर
जितने भी मत है,
वह
सभी का खण्डन करता था। यह उसका
नियम था। अत:
सब
लोगो ने उस ब्राह्मण का नाम
'खण्डन'
रख
दिया था। एक दिन वह श्रीमहाप्रभुजी
के सेवक वैष्ण्वो की मण्डली
में भी पहुँच गया और पुष्टिमत
का खण्डन करने लगा। वैष्णवो
ने उससे कहा -"यदि
तुजे शास्त्रार्थ करना है तो
पण्डितो की मण्डली में जा
हमारी मण्डली में तेरे आने
का कोई औचित्य नहीं है। यहाँ
तो भगवद वार्ता का काम है।
भगवद यश सुनना हो या गाना हो
तो यहाँ आ जा।"
यह
सुनकर भी वह नहीं माना। प्रतिदिन
आकर कुछ न कुछ खण्डन करता ही
था|
यह
उसका स्वभाव था। एक दिन वैष्ण्वो
का मन उसके व्यवहार से बहुत
उदास हो गया|
वह
खण्डन -
ब्राह्मण
अपने घर में सो रहा था,
तो
चार लोग उसे मुदगरो से मारने
के लिए आए और उसे मारने लगे|
उसने
पूछा -
"तुम
मुझे क्यों मार रहे हो?"
उन
चारो ने कहा -"
तुम
भगवद धर्म का खण्डन करते हो|
भगवद
धर्म सर्वोपरि है,
सभी
धर्मो से श्रेष्ठ है । जो केवल
भगवद परायण है,
जिन्होंने
अपने आपको भगवदर्पण कर दिया
है|
उनका
सर्वस्व तन-मन-धन
सभी भगवदर्पण हो चूका है। कोई
भी अर्थ शेष नहीं रहा है|
शास्त्रों
में कहा है-
जिन्होंने
आत्म निवेदन किया है उनका कोई
भी अर्थ शेष नहीं है|
सर्वसिद्ध
ऐसे धर्म का तू खण्डन करता है|
इसलिए
हम तुमको मार रहे है|
यह
सुनकर वह खण्डन ब्राह्मण उन
चारो के पैरो में गिर पड़ा और
दूसरे दिन वैष्णवो की मण्डली
में आकर उनके चरणों में गिर
गया|
उन
वैष्ण्वो से विनती की-"
मुझे
कृपा करके वैष्णव बनाओ|"
वैष्णव
मण्डली उसे लेकर श्रीगोकुल
आई|
वह
श्रीगुसांईजी का सेवक हुआ|
श्रीगुसांईजी
के पास रहकर उसने पुष्टिमार्ग
के ग्रन्थों का अध्ययन किया।
स्वयं भगवद सेवा करने लगा।
भगवद गुणगान करने लगा। उसने
अपने जन्म को धन्य माना। वह
खण्डन ब्राह्मण श्रीगुसांईजी
की कृपा से 'मण्डन'
हो
गया|
अब
तो वह साकार ब्रह्म की व्याख्या
करने लग गया|
वह
दैवी जिव था आसुरी जीवो की
संगत में उसकी बुध्धि फिर गई
थी|
उसको
दैवी जीव समझकर श्रीठाकुरजी
ने अपने जोर से अपनी और खिंच
लिया|
वह
मण्डन ब्राह्मण हो गया|
|जय
श्री कृष्णा|
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