ये
हरिदास अपने घर में श्रीठाकुरजी
की सेवा करते थे और मोहनदास
उनके घर में आकर उतरे थे|
वे
दोनों रात-दिन
भगवद् रस में छके रहते थे|
हरिदासजी
मोहनदास में बहुत आसक्त हुए|
वे
मोहनदास के बिना एक क्षण भी
नहीं रह सकते थे|
वे
भगवद सेवा करते थे और ग्रन्थ
देखते रहते थे|
हरिदासजी
श्रीठाकुरजी का आविर्भाव
मोहनदास में मानते थे|
जब
भी मोहनदास जाने की कहते थे,
यह
सुनकर हरिदास को मूर्च्छा आ
जाती थी|
ऐसी
भावना करते रहते थे की मोहनदास
जीवन पर्यन्त यहाँ से नहीं
जावे|
एक
दिन मोहनदास ने सवेरे जाने
का निच्छय कर ही लिया|
अत:
हरिदासजी
ने अपनी स्त्री से कहा -"तू
घर,
श्रीठाकुरजी
और सन्तान सभी की सँभार रखना,
क्योकि
मोहनदास के यहाँ से जाने पर
मेरे प्राण नहीं रहेंगे|"
उसकी
स्त्री ने विचार किया -
" ऐसा
उपाय करना चाहिए ताकि मोहनदास
यहाँ से न जाए|
तभी
मेरे पति पति के प्राण रह सकते
हैं|
उसने
रात में अपने बेटे को विष दे
दिया|
उस
बेटे ने रात्रि के अन्तिम
प्रहर में प्राण त्याग दिये|
वह
स्त्री रोने लगी|
उस
समय मोहनदास जाने की तयारी
कर रहे थे|
मोहनदास
ने तैयारी करना छोड़कर उस स्त्री
से पूछा -"रात्रि
को तो तुम्हारा बच्चा बिलकुल
ठीक था,
सही
बात बताओ,
क्या
हुआ है?"
हरिदास
की स्त्री ने सारी बात सच -
सच
बता दी|
यह
सुनकर मोहनदास चकित हो गए उसने
विचार किया -
"इनका
कितना प्रगाढ़ प्रेम है और में
कितना निष्ठुर हुँ|
यह
विचार कर प्रभु का नाम स्मरण
करते हुए उस बालक के कान में
अष्टाक्षर मंत्र कहा ;
वह
बालकजीवित हो गया|
इसके
बाद तो मोहनदास ने ऐसा दृढ
निश्चय किया की यदि हरिदास
धक्का देकर भी निकलेगा तो भी
नहीं जाऊंगा|
फिर
जन्म पर्यन्त हरिदास के घर
में ही रहे|
हरिदास
और उनकी स्त्री ऐसे कृपा पात्र
थे जिनने वैष्णव का संग न छूट
जाय,
इसलिए
अपने पुत्र को विष दे दिया|
श्रीठाकुरजी
हरिदास का प्रेम देखकर बहुत
प्रसन्न हुए|
इनकी
वार्ता को कहा तक कहें|
|
जय
श्री कृष्णा |
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