२५२
वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव
१३६)श्री
गुसांईजी के सेवक देवी के
उपासी ब्राह्मण (स्त्री
पुरुष)की
वार्ता
एक
ब्राह्मण अपनी ब्राह्मणी के
साथ आगरा में रहकर देवी की
मंत्र -
साधना
करता था|
उसकी
साधना के प्रभाव से देवी प्रति
मध्यरात्रि में उसे दर्शन
देती थी और उससे बातें करती
थी|
इस
प्रकार बहुत दिन व्यतीत हो
गए|
एक
दिन चाचा हरिवंशजी श्रीगोकुल
से आगरा गए|
ज्येष्ठ
की ग्रीष्म के ताप से बचते
हुए,
एक
प्रहर रात्रि व्यतीत होने पर
आगरा पहुँचे|
बहुत
थक जाने के कारण उस ब्राह्मण
के चबूतरे पर डेरा किया|
वहाँ
शीतल वायु के कारण उन्हें
शीध्र ही निद्रा आ गई|
मध्यरात्रि
होने पर देवी उस ब्राह्मण के
घर पर आई,
लेकिन
बाहर चबूतरे पर पाँच वैष्णवो
को सोता देखकर बड़ी प्रसन्न
हुई और उनके ऊपर पंखा झलने
लगी|
देवी
ने मन में विचार किया कि ये
वैष्णव भगवद् भक्त है,
इन्हे
लाँधकर ब्राह्मण के घर में
कैसे प्रवेश करुँ?
ब्राह्मण
व ब्राह्मणी अत्यधिक आतुर
भाव से देवी के दर्शनों की
प्रतीक्षा में थे|
देर
होने पर बड़े आर्तभाव से प्रार्थना
पूर्वक आवहान करने लगे लेकिन
देवी फिर भी नहीं गई|
वह
रात्रि भर चाचाजी के पंखा झलती
रहीं|
जब
रात्रि चार घङी शेष रह गई तो
चाचाजी उठे और संतदास के घर
के लिए चल दिए|
देवी
भी ब्राह्मण के घर में अन्दर
चली गई और उस ब्राह्मण दम्पति
को दर्शन दिए|
ब्राह्मण
ने हाथ जोड़कर मध्य रात्रि में
न आने का कारण पूछा और साथ ही
अपना अपराध भी जानना चाहा
जिसके कारण रात्रि में दर्शन
नहीं हुए|
देवी
ने कहा-
"तुम्हारे
घर के आगे वैष्णव सोते थे,
में
उनके ऊपर पंखा झलती रही|
वैष्णव
त्रिलोकी में सर्वश्रेष्ठ
है|
साक्षात्
भगवान भी वैष्णवो के वशीभूत
है|
मेरे
जैसे देवता उन वैष्ण्वो की
टहल (चाकरी)
करना
चाहते है लेकिन वैष्णवो की
टहल (सेवा)
उन्हें
प्राप्त नहीं है|"
यह
सुनकर ब्राह्मण बोला -
"ऐसे
वैष्ण्वो के दर्शन तो हमें
भी कराओ|"
तब
उस देवी ने कहा-
" में
तुम्हारे ऊपर प्रशन्न हुँ,
तुम्हारा
सच्चाभाव देखकर में तुमसे
कहती हुँ -
तुम
दोनों (स्त्री
पुरुष)
उस
सन्तदास के घर जाओ और उसके
यहाँ आए हुए वैष्णव के परामर्श
के अनुसार श्रीगुसांईजी की
शरण में चले जाओ|"
इसके
बाद वह ब्राह्मण अपनी स्त्री
के साथ के साथ सन्तदास के घर
गया और वहाँ चाचा हरिवंशजी
से मिला|
उस
ब्राह्मण ने उनको समस्त वृतान्त
सुना दिया|
तब
तो चाचाजी ने उन दोनों को नाम
सुनाया और पुष्टिमार्ग की
रीति सिखाई|
फिर
उन दोनों स्त्री पुरुषों को
चाचाजी अपने साथ श्रीगोकुल
ले गए|
वहाँ
श्रीगुसांईजी के दर्शन कराए|
भली
प्रकार से उनके बारे में
श्रीगुसांईजी को बताया|
श्रीगुसांईजी
ने उन दोनों को नाम निवेदन
कराया|
वे
दोनों स्त्री पुरुष श्रीनवनीतप्रियजी
के दर्शन करके बहुत प्रशन्न
हुए|
श्रीगुसांईजी
ने श्रीमदन मोहनजी की सेवा
उनके माथे पधराई|
वे
सेवा करने लग गए|
श्रीगुसांईजी
ने उन दोनों को श्रीनाथजी के
दर्शन भी अपने साथ ले जाकर
कराए|
उन
दोनों ने श्रीगुसांईजी से
विनती करके चाचा हरिवंशजी को
अपने साथ एक महीने के लिए आगरा
ले आए|
चाचा
हरिवंशजी ने उन्हें कृपा करके
मार्ग की रीति भलीभाँति समजाई|
ये
दोनों स्त्री पुरुष श्रीगुसांईजी
के ऐसे कृपा पात्र हुए|
|
जय
श्री कृष्णा |
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