२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव-१४३)श्रीगुसांईजी
के सेवक एक पटेल के बेटा और
पटवारी की बेटी की वार्ता
पटेल
के बेटा और पटवारी की बेटी का
बचपन से ही बहुत स्नेह था।
पटवारी की बेटी का विवाह हुआ
और परदेश में ससुराल गई । ससुराल
जाते समय उसके सगे सम्बन्दी
पहुंचाने चले तो वह पटेल का
बेटा भी साथ गया|
सब
सगे समबन्दी तो उसे पहुंचाकर
पुन:
आ
गए लेकिन पटेल का बेटा एक वृक्ष
पर चढ़ कर उसकी गाड़ी को देखता
रहा। जब गाड़ी आंखों से औझल हो
गई तो पटेल के बेटे कोविरहताप
हुआ और उसके प्राण छूट गए ।
उसी वृक्ष के नीचे उस पटेल के
बेटा का चबूतरा बनाया गया ।
कुछ दिन बाद जब पटवारी की बेटी
पुन:
अपने
गाँव में आई तो उसने वृक्ष के
नीचे बने हुए नवीन चबूतरे को
देखकर पूछा -"
ये
चबूतरा यहाँ क्यों बनाया गया
है ?"
लोगो
ने उसे समाचार सुनाए तो सुनते
ही उसके प्राण छूट गए|
उस
पटवारी की बेटी का भी चबूतरा
उसी वृक्ष के निचे बनाया गया|
कुछ
दिन पीछे श्रीगुसांईजी उस
देश में पधारे । उस वृक्ष के
निचे डेरा किया। उस वृक्ष पर
वे दोनों भुत योनि में विधमान
थे। श्रीगुसांईजी का दर्शन
करके उन्होंने सोचा -"
हमारा
उध्धार हो जाए तो ठीक रहे|"
वे
दोनों रात में श्रीगुसांईजी
के डेरा की चौकसी करने लगे और
उन्होंने श्रीगुसांईजी के
चौकीदारों से कहा-
" तुम
सब सो जाओ ,
इस
डेरा की चौकी तो हम देंगे?"
चौकीदारों
ने पूछा -"
तुम
कौन हो?"
तब
उन्होंने अपनी सारी कथा कही|
चौकीदारों
ने उनके बारे में श्रीगुसांईजी
से निवेदन किया। श्रीगुसांईजी
उन्हें देखने के लिए पधारे|
जब
श्रीगुसांईजी की दिव्या दृष्टी
पड़ी तो वे दोनों भूत योनि
त्यागकर दिव्य रूप हो गए|
श्रीगुसांईजी
ने उन्हें दृष्टी द्वारा नाम
निवेदन कराया और अपने प्रताप
के बल से उन्हें तुरन्त ही
भगवल्लीला में प्रवेश करया।
सों वे दोनों ही श्रीगुसांईजी
के ऐसे कृपा पात्र थे।
|जय
श्री कृष्णा|
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