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वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव-१३९)श्री
गुसांईजी के सेवक एक चोर की
वार्ता
एक
चोर श्रीनवनीतप्रियजी के
मंदिर में रात्रि को छिप गया
और उसने पात्र,
आभूषण,
वस्त्र
आदि सब इक्टठे किये और एक कपडे
की पोटली में बाँध लिए|
वह
उस पोटली को उठाने लगा लेकिन
वह गाँठ (पोटली)
उससे
नहीं उठी,
उसने
साडी रात जोर लगाया|
प्रात:काल
वह चोर पकड़ा गया|
उसे
पकड़कर श्रीगुसांईजी के पास
ले गए|
श्रीगुसांईजी
ने कहा -
"इसे
छोड़ दो,
क्योकि
यदि पृथ्वीपति (बादशाह)
को
पता लगेगा तो वह इसे मार डालेगा|"
श्रीगुसांईजी
को बहुत दया आई और उस चोर को
छोड़ दिया|
बाद
में उस चोर के मन में विचार
आया की मुझे बादशाह मरवा देता
लेकिन श्रीगुसांईजी ने दया
करके मुझे छोड़ दिया है। इन्होने
मुझे कृपा करके प्राण डान दिया
है। में इनकी शरण में जाऊ तो
ठीक रहे। वह चोर श्रीगुसांईजी
का सेवक हो गया। श्रीगुसांईजी
ने उसे चोरी छोड़ देने की आज्ञा
दी|
उस
चोर ने हाथ जोड़कर कहा-"महाराज,
मुझ
पर बिना चोरी किया तो रहा नहीं
जायेगा|"
फिर
श्रीगुसांईजी ने कहा-"अच्छा
तू निर्दय होकर चोरी मत कर।
अर्थात जिसके पास सौ रूपया
हो तो उसके दो रुपया की चोरी
करेगा तो उसका मन नहीं दु:खेगा,
जिसकी
तू चोरी करेगा|
यदि
तू सत्यभाषण करेगा तो प्रभु
एक न एक दिन तेरा मन फेर देंगे|
प्रभु
बड़े दयालु है,तेरा
मन अपने चरणों में लगा देंगे|"
यह
कहकर उसे वैष्णवता की रीति
का उपदेश देकर उसे विदा किया।
उस चोर ने एक बार अपने मन में
विचार किया की यदि राजा के
यहाँ चोरी की जाए तो एक बार
में ही काम हो जाएगा|
गरीब
के घर चोरी अब नहीं करूँगा|
एस
उसके मन में विचार आया|
एक
दिन वह चोर राजा के घर में चोरी
के लिए गया। वह भद्रपुरुष के
रूप में गया|
प्रहरी
ने पूछा -"तुम
कहा जा रहे हो?"
उसने
कहा-"हम
चोरी करने जा रहे है|"
सभी
ने समझा यह बड़ा मसखरा है जो कह
कर चोरी करने जा रहे है|
किसी
अन्य कार्य से जाता होगा,
यह
सोचकर उसे अन्दर जाने दिया|
वह
निश्शंक होकर राजमहल के अन्दर
चला गया|
चोरी
करके लौटा तो भी उसने सत्य
कहा-"में
चोरी करके आ रहा हुँ|"
लोगो
ने उसकी बात को मजाक समझकर उसे
बहार जाने दिया|
बाद
में पता लगा की राजमहल में से
जवाहरात चोरी हो गए है|
राजा
के सिपाहियों ने उसे खोज निकाला
और राजा के समक्ष पेश किया|
राजा
ने उससे पूछा-"तूने
कैसे चोरी की|"
उसने
कहा-"में
तो सबसे चोरी करने के लिए कहकर
अंदर गया था और चोरी करके बाहर
आने पर भी कहा था की चोरी करके
आया हुँ लेकिन पहेरेदारो ने
मेरी सत्य बात पर ध्यान ही
नहीं दिया|
राजा
ने उसकी कही बात की जाँच की तो
चोर के बयान को सत्य पाया|
अत:
राजा
ने प्रशन्न होकर उसे नौकरी
पर रख लिया|
उस
पर सारी वयवस्था का भार दाल
दिया जिसे उस चोर ने स्वीकार
कर लिया|
फिर
श्रीगुसांईजी को पधरा कर
उन्हें बहुत द्रव्य भेट किया|
श्रीठाकुरजी
पधरा कर सेवा करने लग गया|
श्रीगुसांईजी
की कृपा से परम भगदीय हो गया|
उसे
श्रीगुसांईजी की आज्ञा का
ऐसा विश्वास था की उसके लौकिक
व अलौकिक सभी कार्य सिध्ध हो
गए|
|जय
श्री कृष्णा|
REALLY SOUL STIRRING
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