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वैष्णवो की वार्ता
कुछ
पटेल गुजरात में एक साथ
श्रीगोकुल गए तो उस संग में
यह पटेल भी चल दिया। रास्ते
में घास खोद कर बेचता था और
अपना निर्वाह करता था। श्रीगोकुल
पहुंचने पर घास खोदने का दरांत
बेच दिया उससे प्राप्त द्रव्य
को श्रीगुसांईजी को भेंटकर
दिया। श्रीगुसांईजी तो अन्तरयामी
है,
अत:
उस
वैष्णव को बड़े स्नेहपूर्वक
बुलाकर पास बैठाते,
अन्य
वैष्णवो को बड़ा आश्चर्य होता
और सोचते इसमें ऐसी क्या विशेषता
है उनकी आशंका को भी श्रीगुसांईजी
समझ गए अत:
उन्होंने
समस्त वैष्णवो के सामने कहा
-"
इस
पटेल ने अपना सर्वस्व अर्पण
किया है। अब इसके पास निर्वाह
के लिए दरांत भी नहीं है। अब
तो यह हाथो से दूब खोदता है और
बेचता है। यह दो दिन तक भूखा
भी रहा है,
लेकिन
इसने किसी से कुछ भी नहीं कहा।
ऐसा निषिकंचन वैष्णव हमको
बहुत प्रिय है।"
श्रीगुसांईजी
ने सर्वोत्त्तम स्त्रोत में
महाप्रभुजी का नाम-"सवर्थोजिझदखिल
प्राण प्रिय"
कहा
है। इसका आशय है -जिन्होंने
सम्पूर्ण स्वार्थो का त्याग
कर दिया है,ऐसे
वैष्णव जिनको सर्वाधिक प्रिय
है। सो इस पटेल के जैसे वैष्णव
श्रीमहाप्रभुजी को प्राणो
से भी अधिक प्रिय है। इन सबके
हदय में श्रीठाकुरजी विराजते
है। ऐसे वैष्णवो के भाग्य की
क्या बड़ाई की जाए। सो वह वैष्णव
ऐसा कृपापात्र था।
|जय
श्री कृष्णा|
Jai shreenathji
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