Monday, February 29, 2016

Shri Gusaiji Ke Sevak Ganesh Vyas Ki Varta

२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव ११२)श्रीगुसांईजी के सेवक गणेश व्यास की वार्ता

(प्रसंग-)
गणेश व्यास के लिए श्रीनाथजी सानुभव थे । एक दिन गणेश व्यास,श्रीनाथजी के लिए सामग्री ला रहे थे । मार्ग में वर्षा होने लगी । गाँव के बाहर एक देवी का मंदिर था उस में निवास किया । वहाँ के लोगों ने गणेश व्यास से कहा - " जो भी मनुष्य रात्रि में इस मन्दिर में रहता है,उसे देवी भक्षण कर जाती है ।" गणेश व्यास ने देवी के मन्दिर को जल से धोया और देवी के कान में अष्टाक्षर मंत्र (श्रीकृष्ण: शरणं मम) सुनाया रात्रि में गणेश व्यास सो गए । उस देवी ने गाँव के राजा को स्वप्न में कहा- " अब मैं वैष्णव हो गई हूँ, तुम मेरे लिए प्रतिदिन दो बकरा भेजते हो सो भेजना बन्द कर देना । तुम सब भी वैष्णव हो जाओ । अन्यथा,तुम सब को कष्ट होगा ।" रात्रि में स्वप्न में राजा को चैतन्यता का अनुभव हुआ । उसे स्वप्न में सत्यता का अनुभव हुआ । प्रात: काल राजा उसी मन्दिर में आया । वहाँ गणेश व्यास को देखकर,उससे जिज्ञासा वश पूछा कि,यहाँ क्या हुआ है? गणेश व्यास ने सारी बात बताई और राजा को लेकर श्रीगुसांईजी के पास आए । उसे श्रीगुसांईजी का सेवक कराया सो गणेश व्यास ऐसे कृपा पात्र थे जिनके संग से देवी और राजा दोनों ही वैष्णव हो गए ।
(प्रसंग-)
श्रीगुसांईजी जब गणेश व्यास से खीज़ते थे तो गणेश व्यास इसे अपना सौभाग्य मानते थे । श्रीगुसांईजी उनके पीछे उनकी बहुत प्रशंसा भी करते थे । एक दिन किसी वैष्णव ने श्रीगुसांईजी से पूछ ही लिया- " महाराज,आप गणेश व्यास के सम्मुख तो उन पर खीजते हो और पीठ पीछे उनकी प्रशंसा करते हो, एसा क्यों है?" श्रीगुसांईजी ने आज्ञा की - " वैष्णवता इसी का नाम है-रिस (क्रोधित) होने से भी भाव में विकार नहीं आवे । श्रीगणेश व्यास ऐसे ही कृपा पात्र थे जिन पर श्रीगुसांईजी खीजते थे लेकिन सदभाव में विकृत नहीं आती थी |

|जय श्री कृष्णा|
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