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वैष्णवो की वार्ता
(
वैष्णव
१०७ )श्रीगुसांईजी
के सेवक गोपालदास की वार्ता
गोपालदास
के लिए जब नाम निवेदन हुआ तो
गोपालदास ने श्रीगुसांईजी
से विनती की -''महाराज,अब
मुझे क्या करना है ?''
तब
श्रीगुसांईजी ने आજ્ઞા
की
-तुम
गोपीनाथ का सत्संग करो |''
गोपालदास
गोपीनाथ के पास जाकर रहे उनका
यह विचार था कि गोपीनाथ कभी
भी बिना विचारे कोई काम नहीं
करते हैं |
गोपीनाथ
के पीछे पूर्ण पुरषोत्तम
श्रीनाथजी फिरा ही करते थे |
किसी
कार्य से गोपीनाथ व्रज से
दिल्ली गए तो उनके साथ गोपालदास
भी गए |
रास्ते
में जंगल में रात पड़ी कोई भी
मनुष्य नहीं था,एक
वृक्ष के नीचे डेरा किया |
थकान
होने के कारण गोपालदास को नींद
आ गई और गोपीनाथ सर्वोत्तम
स्तोत्र का जप करने बैठ गए |
जब
रात सवा प्रहर व्यतीत हो गई
तो एक सर्प आया और गोपालदास
के गले में काटने लगा |
गोपीनाथ
ने उस सर्प को लकड़ी से दूर किया
|पुनः
सर्प आया तो गोपीनाथ ने दुबारा
भू उसे दूर किया फिर सर्प
आया,गोपीनाथ
ने फिर हटाया |
इस
प्रकार उसने एक सौ बार गोपालदास
पर सर्प आया और उतने ही बार
उसे गोपीनाथ ने हटाया |
इसके
बाद सर्प ने में यह मेरे गले
का रक्त पीता है तो दूसरे जन्म
में,मैं
इसके गले का रक्त पान करता
हूँ|
गोपीनाथ
ने कहा-
''सर्पराज,अब
तो यह गोपालदास का अन्तिम जन्म
है,मै
तुजे काटने नहीं दूँगा |
सर्प
बोला -''मैं
इसका लहू पीये बिना नहीं रहूंगा
|''
गोपीनाथ
ने कहा-''तू
बैठ,तुजे
इसके गले का लहू पिला देते
है |''
यह
सुनकर सर्प रुक कर बैठ गया |
गोपीनाथ
ने एक छुरी लेकर और कटोरी को
गले के नीचे रखकर,उसके
गले से खून लेना चाहा |
गोपालदास
की नींद खुल गई |
गोपालदास
बोला-''कौन
है ?
'' गोपीनाथ
ने कहा -''मैं
हूँ गोपीनाथ |''
गोपालदास
को सर्प के बारे में कोई जानकारी
नहीं थी |
उसने
तो अपने मन में सोच लिया कि
गोपीनाथ करेंगे सो तो भला ही
करेंगे |
उसके
मन में यह विचार भीगोपीनाथ
से कहा -''तू
मुझे कहाँ तक हटाएगा |
मेरा
इसका तो रूणानुबंध है |
एक
जन्म नहीं आया कि गोपीनाथ
मुझेइस घोर जंगल में मारने
के लिए छुरी लिए हैं |
गोपालदास
को कुछ पता भी नहीं था |
गोपीनाथ
ने सर्प के लिए गोपालदास का
लहू पिला दिया और गोपालदास
के गले पर मरहम पट्टी कर दी |
फिर
तो गोपीनाथ भी सो गए |
प्रात:
काल
उठकर दोनों पुनः चल पड़े |
रास्ते
में गोपीनाथ ने गोपालदास ने
श्रीगुसांईजी से विनती की
''गोपालदास
का मैंने गला काटा,तो
भी यह कुछ भी नहीं बोला |''
श्रीगुसांईजी
ने आજ્ઞા
की
-''
गोपालदास
ने विश्वास रखा|''
विश्वास
रखने से व्यक्ति मृत्यु से
भी बच जाता है |
वैष्णव
के संग से जन्म जन्मान्तर के
संकटो से मुक्ति मिल जाती
है,यह
विश्वास पक्का होना चाहिए |
वास्तव
में गोपालदास ऐसे श्रीगुसांईजी
के कृपा पात्र थे कि जिनके
विश्वास की सराहना श्रीगुसांईजी
ने भी की |
|जय
श्री कृष्णा|
श्रीजी बावा की जै।यमुनाजी की जै।महाप्रभुजी की जै।गोसाईं जी की जै।गुरुदेव जी की जै।
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