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वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव
१०४)श्रीगुसांईजी
के सेवक माँ बेटी की वार्ता
दोनों
माँ बेटी राजनगर में रहती थी|
एक
बार श्रीगुसांईजी राजनगर
पधारे तो दोनों ही सेवक हुई|
श्रीगुसांईजी
ने आज्ञा की -
" तुम
सेवा करो|"
उन्हों
ने कहा -
" हमारे
पास द्रव्य नहीं है|
श्रीगुसांईजी
ने कहा -
" जो
तुम घर में करते होओ,
वैसे
ही करो|
परन्तु
मार्ग की रीति से भोग धरो|"
फिर
उन्होंने प्राथना की -
" बंटा
भरने और उत्थापन का भोग धरने
के लिए हमारे पास द्रव्य नहीं
है|"
श्रीगुसांईजी
ने आज्ञा की -
" बाजरा
भिगोकर सारा काम चलाया जा सकता
है|"
श्रीगुसांईजी
ने उनके माथे सेवा पधरा दी|
वे
भली भाँति सेवा करने लगी|
एक
दिन गाँव में श्रीगुसांईजी
पधारे तो घंटानाद हुआ । घंटा
की ध्वनि सुनकर श्रीगुसांईजी
ने पूछा -
" यह
किसका घर है?"
वैष्णवो
ने कहा -
" महाराज
,
माँ
बेटी दोनों यही रहती है|
माता
की उम्र पिचहतर वर्ष है,
बेटी
की उम्र साठ वर्ष है । इनका
आचार विचार बराबर नहीं है|"
श्रीगुसांईजी
ने कहा -"
हम
पहले उनका घर देखना चाहते है|"
श्रीगुसांईजी
कृपा करके माँ बेटी के घर पधारे|
श्रीगुसांईजी
को पधारे हुए देखकर दोनों बहुत
प्रसन्न हुई|
श्रीगुसांईजी
ने पूछा -
" क्या
समय है?"
तब
बाई ने कहा -
" उत्थापन
भोग सरने की तैयारी है|
इसी
प्रकार उस वृद्धा माता ने भी
कहा|
श्रीगुसांईजी
भीतर पधारे तो देखा श्रीठाकुरजी
बाजरे के दाने अरोग रहे है|
श्रीठाकुरजी
ने आज्ञा दी -
" आप
ये प्रसाद लो|"
श्रीगुसांईजी
भोग सरा कर बहार ले आए और डोकरी
को बताकर स्वयं आरोगने लगे|
उन
दोनों माँ बेटी का ह्रदय भर
आया|
उन्होंने
मन में समझा श्रीगुसांईजी
कितने दयालु है|
इसके
पश्चात वे वैष्णव जो डोकरी
से व्यव्हार नहीं करते थे सभी
ने बाजरे के दानो का प्रसाद
लिया इसके बाद तो बड़े बड़े
वैष्णव प्रतिदिन डोकरी के घर
बाजरे के दानो का प्रसाद लेने
आने लगे|
श्रीगुसांईजी
के बाजरे के दाने आरोगने के
बाद से वैष्णव उस डोकरी का
बहुत सम्मान करने लगे|
माँ
बेटी श्रीगुसांईजी की ऐसी
कृपा पात्र थी|
|जय
श्री कृष्णा|
जै श्री कृष्णा।यमुना महारानी की जै।महाप्रभुजी प्यारे की जै।गोसाईं जी परम दयाल की जै।गुरुदेवजी प्यारे की जै।
ReplyDeleteजै श्री कृष्णा।यमुना महारानी की जै।महाप्रभुजी प्यारे की जै।गोसाईं जी परम दयाल की जै।गुरुदेवजी प्यारे की जै।
ReplyDeleteHello mmate nice post
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