२५२
वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव
१११)
श्रीगुसांईजी
के सेवक देव ब्राह्मण बंगाली
की वार्ता
देव
ब्राह्मण बंगाल से ब्रजयात्रा
करने के लिए आए । यहाँ
श्रीगोवर्धननाथजी के दर्शन
कर के उनका मन बहुत प्रसनन
हुआ । उन्होंने श्रीगुसांईजी
के दर्शन किए और उनसे विनम्र
निवेदन किया-
'' मुझे
अपनी शरण में ले लीजिए ।''
श्रीगुसांईजी
ने कृपा समर्पण कराया और उस
ब्राहमण को यहाँ रख क्र
पुष्टिमार्गीय सेवा प्रणाली
की शिक्षा दी । इसके बाद वह
ब्राह्मण श्रीगुसांईजी से
आज्ञा लेकर बंगाल को गया ।
वहाँ उसने अपने घर में श्रीनाथजी
की सेवा करने लगा । एक दिन उस
ब्राह्मण ने उड़द की दाल के बड़े
बनाए । फिर उसके मन में विचार
हुआ-
''कुछ
मिष्ठान्न तो अवश्य होना चाहिए
। उसके यहाँ द्रव्य का बहुत
संकोच था अत:
थोड़ा
सा गुड लाकर श्रीनाथजी को भोग
समर्पित किया । श्रीनाथजी
साक्षात अरोगने के लिए पधारे
। वहाँ श्रीगिरिराजजी ऊपर
राजभोग रखे ही रह गए । आरोगे
नहीं । भीतरिया ने यथावसर
अनवसर करा दिया । उस दिन
श्रीगुसांईजी गोकुल में
विराजते थे । श्रीनाथजी ने
गोकुल में श्रीगुसांईजी को
जताया की "
आज
तो हम भूखे हैं । हम बंगाल में
देव ब्राह्मण के यहाँ उड़त के
बड़ा और गुड आरोगे रहे थे । पीछे
से भीतरिया ने राजभोग रखा और
यथावसर अनौसर करा दिया ।"
श्रीगुसांईजी
उसी समय श्रीगोकुल से श्रीगिरिराजजी
पधारे और सामग्री तैयार करा
क्र राजभोग धराया । उस देव
ब्राह्मण को पत्र लिखा "
तुमने
अमुक दिन श्रीठाकुरजी को गुड़
और बड़ा भोग घरे थे सो श्रीनाथजी
ने भली भांति से अरोगे हैं ।"
यह
पत्र पढकर देव ब्राह्मण बहुत
प्रसन्न हुआ । वह दो थान बंगाली
मलमल के लेकर चला और आकर
श्रीगुसांईजी से विनती की -
" ये
थान अंगीकार करें ।"
श्रीगुसांईजी
के आज्ञा की -
" ये
थान तो श्रीनाथजी के योग्य
हैं ।"
इस
ब्राह्मण ने कहा -
" एक
दूसरा थान भी लाया हूँ,उसे
आप अंगीकार करें ।'
श्रीगुसांईजी
ने वैसा ही किया । श्रीनाथजी
को मलमल का बागा धारण कराया
और देव ब्राहमण को दर्शन कराए
। सो वे ब्राह्मण ऐसे कृपा
पात्र भगवदीय थे |
|जय
श्री कृष्णा|
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