Wednesday, February 3, 2016

Shri Gusaiji Ke Sevak Ek Raja Ki Varta

२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव १०३)श्रीगुसांईजी के सेवक एक राजा की वार्ता


जिनके गाँव में साँचोर को मार दिया था और वह फिर जीवित हो गया सो वह राजा दोनों सांचोरा भाइयों को लेकर श्रीगोकुल गया| उसने जाकर श्रीगुसांईजी के दर्शन किये| उसे श्रीगुसांईजी के दर्शन साक्षात पूर्ण पुरषोत्तम के रूप में हुए| राजा ने हाथ जोड़कर विनती (प्राथना) की -" महाराज मुझ को शरण में लो|" श्रीगुसांईजी ने आज्ञा की -" अभी कुछ दिन तुम यहाँ श्रीगोकुल में रहो, हम विचार, करके तुम्हे शरण में लेंगे|" श्रीगुसांईजी ने श्रीनाथजी से पूछा-" इस राजा ने साँचोर भक्त को मरवाया था, इसको शरण में लिया जावे या नहीं?" तब श्रीनाथजी ने आज्ञा की-" जब भक्त का अपराध भक्त क्षमा कर दे, तो दोष नहीं है| इस सांचोरा का अपराध, अन्य सांचोरा ने क्षमा कर दिया, तब इस राजा को शरण लेने में क्या चिन्ता है? इसका अपराध भी नहीं रहा|" फिर श्रीगुसांईजी श्रीगोकुल पधारे और उस राजा को शरण में लिया| राजा ने श्रीगुसांईजी से विनती करके सेवा पधराई और श्रीगुसांईजी से प्राथना की - " आप मेरे गाँव में पधारो| सम्पूर्ण गाँव को वैष्णव बनाओ| ये दोनों सांचोरा भाई मेरा त्याग नहीं करें, ऐसी कृपा करें|" श्रीगुसांईजी ने राजा से कहा - " ये दोनों भाई, तुम्हारा त्याग नहीं करेंगे| परन्तु तुम भी इनका त्याग मत कर देना|" यह सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ| श्रीठाकुरजी पधारकर दोनों साँचोर भाइयो को साथ लेकर अपने देश में आया| यहाँ आकर भगवत सेवा करने लगा| जैसे दोनों भाई कहते थे, राजा वैसे ही करता था| उस राजा से श्रीनाथजी सानुभव हो गए| राजा श्रीगुसांईजी का ऐसा कृपा पात्र था|



|जय श्री कृष्णा|
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2 comments:

  1. जै श्री कृष्णा।श्याम सुन्दर श्री यमुना महारानी की जै। महाप्रभुजी की जै। गोसाईं जी परम दयाल की जै।गुरुदेव जी की जै।

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  2. जै श्री कृष्णा।श्याम सुन्दर श्री यमुना महारानी की जै। महाप्रभुजी की जै। गोसाईं जी परम दयाल की जै।गुरुदेव जी की जै।

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