२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव १०२)श्रीगुसांईजी के सेवक जनभगवानदास और राजपूत की वार्ता
ये जन भगवानदास व्रज में फिरा करते थे और श्रीगुसांईजी की कथा सुनते थे| ये अहनिर्श भगवल्लीला का विचार करते रहते थे| वे श्रीगुसांईजी के सेवकों से ही संभाषण और व्यव्हार करते थे| कभी वे श्रीजी द्वार और कभी श्रीगोकुल में फिरा करते थे| नये पद बनाकर गाया करते थे| एक समय श्रीनाथजी के दर्शन करने हेतु जन्माष्टमी के अवसर पर गए, तब एक पद रचना की -
राग सारंग -" ग्वाल बधाई माँगन आये|
गोपी गोरस सकल लिये संग, सबहि आय सिर नाये||1||
अब से गर्व गिनत नहि काहु, करियत मन के भाये|
जहां नंद बैठे नांदीमुख, जहां गहन को धाये||2||
वरन वरन पाये पर ब्रजजन, उर आनंद न समाये|
जन भगवान जसोदा रानी, जग की जीवन जाये||3||
यह बधाई जन भगवानदास ने गाई| श्रीगुसांईजी यह पद सुनकर बहुत प्रसन्न हुए| ऐसे अनेक पद जनभगवानदास ने गाये| जनभगवानदास श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा पात्र थे|
| जय श्री कृष्णा |
जय श्री कृष्णा। यमुना महारानी की जय।महाप्रभुजी प्यारे की जय। गोसाईंजी परम दयाल की जय।गुरुदेव जी प्यारे की जय।
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