Saturday, January 30, 2016

Shri Gusaiji Ke Sevak Janbhagvandas Aur Rajput Ki Varta

२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव १०२)श्रीगुसांईजी के सेवक जनभगवानदास और राजपूत की वार्ता



ये जन भगवानदास व्रज में फिरा करते थे और श्रीगुसांईजी की कथा सुनते थे| ये अहनिर्श भगवल्लीला का विचार करते रहते थे| वे श्रीगुसांईजी के सेवकों से ही संभाषण और व्यव्हार करते थे| कभी वे श्रीजी द्वार और कभी श्रीगोकुल में फिरा करते थे| नये पद बनाकर गाया करते थे| एक समय श्रीनाथजी के दर्शन करने हेतु जन्माष्टमी के अवसर पर गए, तब एक पद रचना की -
राग सारंग -" ग्वाल बधाई माँगन आये|
गोपी गोरस सकल लिये संग, सबहि आय सिर नाये||1||
अब से गर्व गिनत नहि काहु, करियत मन के भाये|
जहां नंद बैठे नांदीमुख, जहां गहन को धाये||2||
वरन वरन पाये पर ब्रजजन, उर आनंद समाये|
जन भगवान जसोदा रानी, जग की जीवन जाये||3||

 यह बधाई जन भगवानदास ने गाई| श्रीगुसांईजी यह पद सुनकर बहुत प्रसन्न हुए| ऐसे अनेक पद जनभगवानदास ने गाये| जनभगवानदास श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा पात्र थे|


| जय श्री कृष्णा |


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1 comments:

  1. जय श्री कृष्णा। यमुना महारानी की जय।महाप्रभुजी प्यारे की जय। गोसाईंजी परम दयाल की जय।गुरुदेव जी प्यारे की जय।

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