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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
९४)श्रीगुसांईजी
के सेवक नरसिंहदास की वार्ता
वह
नरसिंहदास रास्ते में जा रहा
था ,
उसे
एक भील मिला। भील का नियम था
कि वह राहगीरों को मारकर गाठड़ी
ले लेता था । वह भील नरसिंह
को मारने के लिए दौड़ा तो उसे
उसका रूप नरसिंह का सा दिखाई
दिया । भील उसे देखकर डर गया।
नरसिंह बोला -"
तू
डरता क्यों है ,
अब
मेरे पास आ।"
भील
बोला -"
तुम
नर हो या सिह हो?
मुझे
सही रूप में ज्ञात नहीं हो रहा
है।"
नरसिह
ने कहा-"
मै
तेरे जैसे लोगो को शिक्षा
देने के लिए सिंह हूँ । अब
तुझको नहीं छोड़ूँगा । ऐसा कहकर
उसने एक थप्पड़ मारकर उसके
हथियार छीन लिए । भील बोला -"
मेरे
हथियार मुझे दे दो,
मै
तुम्हे नहीं मारूँगा ।"
नरसिंहदास
ने कहा-"
तू
अपने घर में जाकर पूछ तैने
जितनी हत्याए की है,
उनका
पाप किस के माथे पर है ?"
भील
घर पूछने गया तो उसके घर वालो
ने कहा-"
हमारे
माथे हत्या नहीं है,
हमने
तुझे हत्या करने के लिए कब कहा
था?
तुम्हे
हमारा पोषण करना था,
तुमने
कैसे किया,
यह
तुम ही जानो।"
भील
ने आकर नरसिह को सब वृतान्त
सुना दिया तो नरसिह ने भील से
कहा-"
तेरी
हत्या में तेरे घर वाले शामिल
नहीं है तो तू हत्या क्यों
करता है ?
तू
मेरे साथ चल मै तेरा कल्याण
श्रीप्रभुजी से कराऊँगा । यह
कहकर नरसिंहदास भील को
श्रीगुसांईजी के पास ले गया।
उसे श्रीगुसांईजी का सेवक
कराया । वह भील श्रीगुसांईजी
का कृपा पात्र हुआ। वे नरसिंहदास
श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा
पात्र थे।
।जय
श्री कृष्ण।
Jay Shree Krishna. Yamuna Maharani ki Jay. Mahaprabhu ji ki jay. Gosainji ki jay. Gurudev ji ki jay
ReplyDeleteJay Shree Krishna. Yamuna Maharani ki Jay. Mahaprabhu ji ki jay. Gosainji ki jay. Gurudev ji ki jay
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