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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
९६)श्रीगुसांईजी
के सेवक राजनगरवासी स्त्री
पुरुष की वार्ता
वे
दोनों स्त्री पुरुष राजनगर
में श्रीठाकुरजी की सेवा करते
थे|
इनकी
वृत्ति रात दिन श्रीठाकुरजी
में लगी हुई थी|
इनके
यहाँ आने जाने वाले वैष्णवों
का भी बहुत सत्कार होता था|
एक
बार दुष्काल हुआ,
फलतः
अन्न बहुत मह्गा हो गया|
घास
तो मिलती ही नहीं थी|
एक
दिन उस वैष्णव के घर में गेंहू
खरीद कर लाये गये थे,
वे
चौक में डाले हुए थे|
एक
दुबली-पतली
सी गाय उन गेंहू को खाने लग
गई|
उस
गाय को हाँके तो भी वह नहीं
जाए तो उस ब्राह्मण की स्त्री
ने हाथ से गाय को सरकाने के
लिए कुछ धक्का सा लगाया कि गाय
वही गिर पड़ी|
उस
गाय के प्राण छूट गए|
उस
ब्राह्मण को बहुत कष्ट हुआ|
अन्य
वैष्णवो ने उस ब्राह्मण परिवार
पर हत्या का दोष लगाकर उसे
अपने वर्ग के पृथक कर दिया|
इस
परिस्थिति में इस ब्राह्मण
दम्पति ने भी अन्न जल त्यागकर
अपने प्राण छोड़ने का निश्चय
किया|
संयोग
वश दो दिन बाद ही श्रीगोकुलनाथजी
राजनगर पधारे|
सब
वैष्णव उनके दर्शन के लिए गए|
उन
वैष्णवो से श्रीगोकुलनाथजी
को गो हत्या की बात ज्ञात हुई
श्रीगोकुलनाथजी ,
परमदयालु
अशरण शरण भक्त वत्सल दीनबंधु
पतितपावन आदि अपने विरद का
स्मरण कर उस वैष्णव को बुलाया
और उससे सारा वृतान्त जाना|
अन्य
वैष्णवो से पूछताछ के पश्चात
उन्होंने आज्ञा की-"
इसके
सिर पर हत्या नहीं है|"
उन्होंने
इस वैष्णव को बुला कर आज्ञा
की "
तू
जाकर श्रीठाकुरजी की सेवा कर
और निष्किचन वैष्णव को बुलाकर
प्रसाद करा|"
उस
वैषणव ने श्रीगोकुलनाथजी की
आज्ञा का पालन किया|इसके
बाद श्रीगोकुलनाथजी ने उस
ब्राह्मण के हाथ से जल आरोगा|
यह
ब्राह्मण ऐसा कृपापात्र था
कि उसने अपना अवगुण छिपाया
नहीं|
।जय
श्री कृष्ण।
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