Saturday, January 9, 2016

Shri Gusaiji Ke Sevak Rajnagarvasi Stri Purush Ki Varta

५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ९६)श्रीगुसांईजी के सेवक राजनगरवासी स्त्री पुरुष की वार्ता

वे दोनों स्त्री पुरुष राजनगर में श्रीठाकुरजी की सेवा करते थे| इनकी वृत्ति रात दिन श्रीठाकुरजी में लगी हुई थी| इनके यहाँ आने जाने वाले वैष्णवों का भी बहुत सत्कार होता था| एक बार दुष्काल हुआ, फलतः अन्न बहुत मह्गा हो गया| घास तो मिलती ही नहीं थी| एक दिन उस वैष्णव के घर में गेंहू खरीद कर लाये गये थे, वे चौक में डाले हुए थे| एक दुबली-पतली सी गाय उन गेंहू को खाने लग गई| उस गाय को हाँके तो भी वह नहीं जाए तो उस ब्राह्मण की स्त्री ने हाथ से गाय को सरकाने के लिए कुछ धक्का सा लगाया कि गाय वही गिर पड़ी| उस गाय के प्राण छूट गए| उस ब्राह्मण को बहुत कष्ट हुआ| अन्य वैष्णवो ने उस ब्राह्मण परिवार पर हत्या का दोष लगाकर उसे अपने वर्ग के पृथक कर दिया| इस परिस्थिति में इस ब्राह्मण दम्पति ने भी अन्न जल त्यागकर अपने प्राण छोड़ने का निश्चय किया| संयोग वश दो दिन बाद ही श्रीगोकुलनाथजी राजनगर पधारे| सब वैष्णव उनके दर्शन के लिए गए| उन वैष्णवो से श्रीगोकुलनाथजी को गो हत्या की बात ज्ञात हुई श्रीगोकुलनाथजी , परमदयालु अशरण शरण भक्त वत्सल दीनबंधु पतितपावन आदि अपने विरद का स्मरण कर उस वैष्णव को बुलाया और उससे सारा वृतान्त जाना| अन्य वैष्णवो से पूछताछ के पश्चात उन्होंने आज्ञा की-" इसके सिर पर हत्या नहीं है|" उन्होंने इस वैष्णव को बुला कर आज्ञा की " तू जाकर श्रीठाकुरजी की सेवा कर और निष्किचन वैष्णव को बुलाकर प्रसाद करा|" उस वैषणव ने श्रीगोकुलनाथजी की आज्ञा का पालन किया|इसके बाद श्रीगोकुलनाथजी ने उस ब्राह्मण के हाथ से जल आरोगा| यह ब्राह्मण ऐसा कृपापात्र था कि उसने अपना अवगुण छिपाया नहीं|


।जय श्री कृष्ण।
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