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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
९५)श्रीगुसांईजी
के सेवक शैव के बेटा की वार्ता
एक
क्षत्रिय श्रीमहाप्रभुजी
का सेवक था और श्रीनवनीतप्रियजी
के जलधारा की सेवा करता था|
श्रीनवनीतप्रियजी
उसे अभुभव कराते रहते थे|
समय
पाकर उसकी देह छूटी|
उसने
एक शैव ब्राह्मण के घर जन्म
लिया|
परन्तु
वह ना तो कुछ बोला और ना ही
रोया|
चुपचाप
पड़ा रहता था|
उसे
दूध पिलाते थे तो पी लिया करता
था|
इस
प्रकार बाहर महिने बीत गए|
जब
उसकी वर्षगाँठ आई तो जाति भोज
हुआ|
वह
जाति भोज में "
श्रीवल्लभाचार्यजी"
इन
अक्षरों को बोला|
पुन:
अगले
बारह मास बीतने पर वर्ष गांठ
आई तो जाति सभा में पुनः दो
शब्द (
नाम)
बोला-"
श्रीवल्लभ
श्रीविटठल|"
तीसरे
वर्ष में तीन शब्द,
चौथे
में चार नाम,
पाँचवे
में पॉँच नाम लिए|
उसके
पिता ने उससे पूछा-"
तू
नित्य प्रति क्यों नहीं बोलता
है?"
उसने
कहा-"
मुझे
श्रीगोकुल में ले चलो,
मै
वहाँ बोलूँगा|"
उसका
पिता उसे श्रीगोकुल में ले
गया|
वहा
जाकर वह बालक पिता से बोला-"
तुम
श्रीगुसांईजी के सेवक हो जाओ,
और
मुझे भी उनका सेवक कराओ|"
उसके
पिता ने श्रीगुसांईजी की शरण
ग्रहण की और उस बालक को भी उनका
सेवक कराया|
जब
उसने श्रीनवनीतप्रियजी के
दर्शन किए तो उसके नेत्रों
में आँसू छलकने लगे|
श्रीनवनीतप्रियजी
उस बालक को हाथ पकड़कर अपनी
लीला में ले गए|
उसका
पिता बड़ा विद्धान था|
उसने
कहा-"
यह
बड़ा भाग्यशाली था|
स्वयं
तो प्रभु की लीला में लीन हुआ,
उसने
मुझे भी श्रीगुसांईजी के दर्शन
करा दिए|
मै
वैष्णव हो गया,
यह
श्रीगुसांईजी की कृपा है वह
बालक श्रीगुसांईजी का ऐसा
कृपा पात्र था जिसको पूर्व
जन्म की स्मृति रही और इस जन्म
में स्वयं भगवल्लीला में लीन
हुआ तथा परिवार को वैष्णव बनवा
दिया|
।जय
श्री कृष्ण।
जय हो प्रभु। शत् शत् दण्डवत् श्रीजी बाबा। यमुनाजी की जै।महाप्रभुजी प्यारे की जै।गोसाईं जी परम दयाल की जै। गुरुदेव जी प्यारे की जै।
ReplyDeleteजय हो प्रभु। शत् शत् दण्डवत् श्रीजी बाबा। यमुनाजी की जै।महाप्रभुजी प्यारे की जै।गोसाईं जी परम दयाल की जै। गुरुदेव जी प्यारे की जै।
ReplyDeleteThis was great tto read
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