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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
९९ )श्रीगुसांईजी
के सेवक एक सेठ और विरक्त की
वार्ता
ये
दोनों सेठ और विरक्त श्रीगुसांईजी
के साथ ब्रजयात्रा के लिए चले|
श्रीगुसांईजी
के संग वैष्णव मण्डल भी बहुत
था|
विरक्त
वैष्णव चुटकी माँगकर निर्वाह
करता था|
एक
दिन विरक्त वैष्णव ने रसोई
की|
उस
रसोई की मेंड पर से कुत्ता
निकल गया|
उसने
श्रीगुसांईजी से व्यवस्था
ली|
श्रीगुसांईजी
ने आज्ञा की -"
तेरे
रसोई छुइ नहीं है|"
दूसरे
दिन सेठ की रसोई की मेंड पर से
कुत्ता निकल गया|
तब
सेठ ने भी श्रीगुसांईजीसे
व्यवस्था चाही|
श्रीगुसांईजी
ने आज्ञा की -
" तेरी
रसोई छू गई है|"
दूसरी
सामग्री मँगाकर रसोई की गई|
दूसरे
दिन समय पाकर सेठ ने श्रीगुसांईजी
से विनती की -"
हे
महाराजाधिराज,
उस
विरक्त वैष्णव की रसोई के न
छूने और मेरी रसोई के छू जाने
की व्यवस्था का क्या कारण है?
कुत्ता
तो दोनों की रसोई की मेंड पर
से गुजरा था|"
श्रीगुसांईजी
ने आज्ञा की -
" इसके
पास द्रव्य नहीं है|
यह
तो पच्चीस घर में माँगकर लाता
है,
तब
निर्वाह करता है|
तुम्हारे
पास द्रव्य विधमान है|
तुम
चाहो जिस समय,
जितनी
चाहो उतनी रसोई करा सकते हो|
इतना
ही तारतम्य है|
इसलिए
इसकी रसोई का छूआ नहीं माना
गया और आपके लिए छूने की व्यवस्था
दी गई|
सेठ
के मन में जो द्रव्य अभिमान
था,
वह
मिट गया|
उसने
यह निश्चय किया -"
यदि
द्रव्य हो और भगवद्पर्ण नहीं
हो तो उस द्रव्य से अनर्थ ही
पैदा होता है|
" उस
विरक्त के मन में चिन्ता रही
कि मेरे पास द्रव्य नहीं है|
अतः
उसकी चिन्ता तो मिटगई|
यदि
इसके पास बहुत द्रव्य होता
तो इसकी बुद्धि भी मेरी जैसी
हो जाती|
वह
सेठ मन में बहुत प्रसन्न हुआ
वह सेठ एयर विरक्त दोनों ही
श्रीगुसांईजी के कृपा पात्र
थे|
उन्ही
की कृपा से सेठ को तत्काल तत्व
का ज्ञान हो गया|
।जय
श्री कृष्ण।
जय हो कृपानिधान गोसाईंजी परम दयाल की। जै श्री कृष्णा।
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