252 Vaishnava 'S Talks
(Vaishnava ९८)श्रीगुसांईजी के सेवक कुम्भनदासजी के बेटा कृष्णदास की वार्ता
कृष्णदास श्रीनाथजी की गायों की सेवा करते थे। एक दिन श्रीगुसांईजी ने कुम्भनदासजी से पूछा -" तुम्हारे कितने बेटा है ?" कुम्भनदासजी बोले -" महाराज , हमारे डेढ़ बेटा है । " श्रीगुसांईजी ने आज्ञा की -" बेटा डेढ़ कैसे हो सकते है आधे बेटा की बात समझ में नहीं आई। " कुम्भनदासजी बोले -" पुष्टिमार्ग में भगवत सेवा और भगवत गुणगान में दोनों मुख्य है । जो दोनों काम करें , वह सम्पूर्ण होता है और जो आधा कार्य करता है " आधा " होता है । चतुर्भुजदास तो भगवत सेवा और भगवद्गुणगान दोनों करता है , कीर्तन नहीं गाता है , अतः यह तो सम्पूर्ण है और कृष्णदास केवल गायो की सेवा करता है , कीर्तन नहीं गाता है , अतः वह " आधा " है। इस प्रकार डेढ़ बेटा है। " यह सुनकर श्रीगुसांईजी मुस्करा गए। उन्होंने आज्ञा की -" वैष्णव ऐसा ही होना चाहिए । " कृष्णदास रात दिन गायो की सेवा करते थे। गाय चराने वन में जाते थे। एक दिन गायो के मध्य एक सिंह आ गया। कृष्णदास ने अपने प्राण देकर भी गाय की रक्षा की । गाय को बचाते हुए कृष्णदास को सिहने झपट मारी , कृष्णदास के उसी समय प्राण निकल गए । श्रीनाथजी उस समय गोपीनाथदास ग्वाल के पास खिरक में गोहोदहन कर रहे थे। कृष्णदास गाय का बछड़ा पकड़ रहे थे। गोपीनाथ दास ग्वाल देख रहे थे यह सब घटना श्रीकुम्भनदासजी की वार्ता में लिखी है। कृष्णदास ऐसे कृपा पात्र थे।
Kjay Sri Krishna.
ठाकुरजी संवारे की जय। गोसाईंजी परम दयाल की जय।
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