Wednesday, February 10, 2016

Shri Gusaiji Ke Sevak Dhyandas Aur Jagannathdas Ki Varta

२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव १०६)श्रीगुसांईजी के सेवक ध्यानदास और जगन्नाथदास की वार्ता

ध्यानदास श्रीगुसांईजी के पास आकर रहे थे और जगन्नाथ दास भी श्रीगुसांईजी के पास आकर रहे| जगन्नाथ दास के हाथ में पदम का चिन्ह था| वे जिस वस्तु में एक वस्तु निकालते थे उसमे एक बढ़ जाती थी| दो वस्तुऍ निकालते थे दो वस्तुऍ बढ़ जाती थी| कोई भी वास्तु कभी घटती नहीं थी| जगन्नाथ दास इतने अधिक भोले थे कि उनको इस बात का आभास तक नहीं था| एक दिन श्रीगुसाँजी की भेंट के पैसे जगन्नाथदास के पास रखे थे| माँगने के लिए बहुत भिखारी आए| जगन्नाथदास ने सभी के लिए पैसा - दो पैसा आदि निकाल निकाल कर दिये| ध्यानदास यह सब कुछ देख रहा था, उसने श्रीगुसांईजी से कहा-" महाराज, यह सभी याचकों को पैसा दो पैसा देता रहता है| यह कहाँ से देता है?" श्रीगुसांईजी ने ध्यानदास को उत्तर दिया - " जो भी कोई सत्कर्म करना चाहता है , श्रीप्रभु सबका मनोरथ पूर्ण करते है| सत्कर्म करने वाले की सहायता श्रीप्रभु अवश्य करते है । उसके सत्कर्म की व्यवस्था श्रीप्रभु स्वयं करते है, उसे कुछ भी कार्य करना नहीं पड़ता है| उसकी व्यवस्था श्रीप्रभु पहले ही बनाकर रखते है । अतः व्यक्ति को कभी भी मन में अभाव नहीं लाना चाहिए| वैष्णव स्वयं ही निर्दोष होता है| उस में जो दोष लगता है , वह स्वयं ही दूषित हो जाता है| तुम तो स्वयं वैष्णव हो , तुम भी दोष रहित हो अतः किसी के ऊपर क्यों दोषारोपण करते हो?" यह सुनकर ध्यानदास बहुत प्रसन्न हुए| उन्होंने ऐसा नियम लिया कि भगवद ध्यान छोड़कर किसी के दोष नहीं देखूँगा| इसके बाद उन्होंने जीवन पर्यन्त किसी के दोष नहीं देखे। भगवद ध्यान करते रहे| वे ध्यानदास और जगन्नाथदास श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा पात्र थे जिनको तुरन्त निर्दोष पन का ज्ञान हो गया , सो वे ऐसे वैष्णव थे|


|जय श्री कृष्णा|
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3 comments:

  1. गोसाईंजी परम दयाल की जै।

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