Monday, December 14, 2015

Shri Gusaiji Ke Sevak Ek Seth Ke Ladke Ki Varta

२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ८६)श्रीगुसांईजी के सेवक एक सेठ के लड़के की वार्ता

जब श्रीगुसांईजी परदेश पधारे तो उस लड़के ने श्रीगुसांईजी के मुख से श्रीमदभागवत के दशमस्कंध के द्रादश अध्याय की सुबोधिनीजी सुनी|
श्लोक-: कृष्ण: कमल पत्राक्ष: पुण्य श्रवण कीर्तन:
स्तूयमानोडनुगैगोपै: साग्रजोव्रजमाव्रजत||"

इस श्लोक की सुबोधिनी में श्रीठाकुरजी नित्य प्रति गोचरण करके ब्रज में पधारते है| यह लीला नित्य है|" इस लड़के ने यह बात सुनी तो श्रीगुसांईजी से विनती की-" महाराज यह लीला अब भी है या नहीं?" तब श्रीगुसांईजी ने आज्ञा की-" ये लीला नित्य है| अखण्ड है, सर्वत्र व्यापक है|" यह बात सुनकर वह लड़का ब्रज में गया| श्यामढाक के पास जाकर बैठ गया| सायं के समय जब गौआं के आने का समय हुआ| वह श्रीठाकुरजी के दर्शन करने के लिए लालायित हुआ| उसे दर्शन नहीं हुए अतः वह बहुत संतप्त हुआ| उसका विप्रयोग देखकर उसे श्रीनाथजी ने दर्शन दिये । सब गोप बालको के संग वेणु बजाते हुए गायों के साथ श्रीनाथजी पधारे| उनके दर्शन करके उस लड़के की देह की दशा विस्मृत हो गई| नया देह धारण करके गोप बालको के साथ नित्य लीला में प्रवेश कर गया| वह वैष्णव का लड़का श्रीगुसांईजी का ऐसा कृपा पात्र था जिसको नित्य लीला के दर्शन देकर श्रीनाथजी ने अपनी लीला में अंगीकार किया|


।जय श्री कृष्ण।
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