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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
-
२०)श्रीगुसांईजी
के सेवक एक कुनबी वैष्णव की
वार्ता
वह
कुनबी गुजराती वैष्णवों के
साथ श्रीगोकुल में आया|
वहाँ
वह श्रीगुसांईजी का सेवक हुआ
और श्रीगुसांईजी से विनती
की-"
मुझे
गायों की सेवा में रखो|"
श्रीगुसांईजी
ने उनकी प्राथना को स्वीकार
कर उसे गायों की सेवा पर नियुक्त
कर दिया। वह वन में गायों चराने
हेतु जाता था । गायों को चादर
से पोंछता था । गायों के नीचे
से गीली मिटटी हटाकर सूखी
मिटटी बिछाता था |
वह
तन मन से गायों की सेवा करता
था|
उसकी
ऐसी सेवा देखकर श्रीगोवर्धननाथजी
बहुत प्रसन्न हुए । उस पटेल
को श्रीनाथजी खिडक में दर्शन
देने लगे|
उसके
साथ खेलने लगे । वहाँ छाक मण्डली
करते थे तो उस पटेल को गोप
ग्वालों के बीच बैठाकर खिलाते
थे । अतः वह महाप्रसाद की पत्तल
लेने नहीं जाता था|
वह
तो एक बार श्रीगुसांईजी के
दर्शन करने के लिए जाता था ।
श्रीगुसांईजी ने एक दिन उससे
पूछा -"
पटेल,
तुम
महाप्रसाद कहाँ लेते हो?"
पटेल
ने हाथ जोड़कर कहा -"
श्रीनाथजी
वन में छोरों (ग्वालों)
के
संग नित्य भोजन करने पधारते
हैं और मुझको भी खिलाते हैं|
फिर
में पत्तल लेने क्यों आऊ ? यह
सुनकर श्रीगुसांईजी बहुत
प्रसन्न हुए|
एक
दिन उस ग्वाल मण्डली में एक
वैष्णव ने पद गाया-"
नाचत
रास में गोपाल|"
तब
उस पटेल ने कहा -"
नाचत
घास में गोपाल|"
यह
सुनकर ग्वाल -
बाल
उसे पकड़कर श्रीगुसांईजी के
पास ले गये|
वैष्णवों
ने श्रीगुसांईजी से कहा -"
महाराज
यह पद को इस प्रकार कहता हैं|
श्रीगुसांईजी
ने कहा-"
इसने
श्रीनाथजी को घास में नाचते
देखा हैं|
तुमने
उन्हें रास में नाचते देखा
हैं|
अतः
तुम दोनों की बात सच हैं|
श्रीगोवर्धननाथजी
की इच्छा हो,
अपने
भक्त को वही दर्शन देते हैं|
दोनों
की बात सच है|
यह
सुनकर वैष्णव बहुत प्रसन्न
हुए|
श्रीनाथजी
पटेल के साथ सखाभाव से रहते
थे । श्रीगुसांईजी की कृपा
से उसे ऐसा अनुभव हुआ|
।जय
श्री कृष्ण।
अदभुद...
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