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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
-
२१)
श्रीगुसांईजी
के सेवक मथुरावासी वैष्णव
क्षत्री की वार्ता
वे
क्षत्री वैष्णव श्रीठाकुरजी
पधराकर भलीभाँति सेवा करते
थे,
भगवद
वार्ता भी बहुत अच्छी करते
थे|
पुष्टिमार्ग
के ग्रन्थ और भावार्थ वे स्वयं
श्रीगुसांईजी से सुनते थे|
मथुरा
के अन्य वैष्णव भी भगवद वार्ता
सुनने के लिए उसके घर आते थे|
वह
क्षत्री वैष्णव प्रतिदिन चना
सेककर अपने हाथ से भोग धरता
था|
स्वयं
अपने हाथ से वैष्णव मण्डली
में बाँटता था|
इस
प्रकार करते करते बहुत दिन
व्यतीत हो गए|
एक
धनिक सेठ उस वैष्णव मण्डली
में आने लगा|
वह
चना प्रसाद ले तो लेता था लेकिन
उन्हें इधर-उधर
डाल देता था|
श्रीमहादेवजी
वैष्णव का रूप बनाकर उस वैष्णव
मण्डली में प्रतिदिन आते थे|
किसी
को भी खबर नहीं थी लेकिन क्षत्री
वैष्णव उन्हें पहचानता था|
जब
वह धनी वैष्णव चनों को फेंकता
था तो श्रीमहादेवजी स्वयं
उन चनों को बीन लेते थे|
एक
दिन उस क्षत्री वैष्णव ने
श्रीमहादेवजी को चने बीनते
देखा|
उस
क्षत्री वैष्णव ने उस धनिक
सेठ से वैष्णव मण्डली में आने
से मनाकर दिया|
जब
वह धनिक सेठ श्रीगोकुल गया
तो वहाँ उससे श्रीगुसांईजी
ने कोई बात नहीं की|
वे
बोले ही नहीं|
श्रीनवनीतप्रियजी
ने उस सेठ को दर्शन नहीं दिये|
अब
तो वह सेठ पुनः मथुरा में आया
और उस क्षत्री वैष्णव के पाँवो
में पड़ गया|
क्षत्री
वैष्णव ने कहा-
" तुमने
भगवत प्रसाद का अपमान किया
है अतः तुम्हे वैष्णव मण्डली
में आने का अधिकार नहीं है ।
फिर तो उस सेठ ने बड़ी दीनता
दिखाई और उस वैष्णव के पैरों
पर गिर पड़ा|
क्षत्री
वैष्णव को दया आ गई उसने उस
सेठ को पुनः मण्डली में आने
के लिए कह दिया|
अब
तो उसको श्रीनवनीतप्रियजी
व् श्रीगुसांईजी ने भी दर्शन
दिये|
वैष्णवों
को जाती -
व्यव्हार
के अनुसार प्रसाद में बाधा
नहीं करनी चाहिए|
प्रसाद
का सदा सम्मान करना चाहिए|
वह
क्षत्री वैष्णव श्रीगुसांईजी
के ऐसे कृपा पात्र थे जिनने
करोड़पति सेठ का भी तिरस्कार
कर दिया|
वे
क्षत्री वैष्णव ऐसे कृपा पात्र
भगवदीय थे|
।जय
श्री कृष्ण।
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