२५२
वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
-
२३)श्रीगुसांईजी
के सेवक एक बंगाली की वार्ता
एक
गौडिया वैष्णव वृन्दावन में
रहता था और मजदूरी करता था|
एक
बार श्रीगुसांईजी वृन्दावन
पधारे तो वह श्रीगुसांईजी का
सेवक हुआ|
उसको
वैष्णव समझकर लोग मजदूरी भी
अधिक देते थे|
उसने
विचार किया कि वैष्णव के कारण
मजदूरी अधिक मिलती है इस प्रकार
धर्म बेचकर खाना अच्छी बात
नहीं है शास्त्रों में लिखा
है-
भगवान
का नाम लेकर जो भिक्षा मागते
है,
उनको
भिक्षा देने वाला नरक में जाता
है|
अतः
धर्म दिखाकर भिक्षा और रोजगार
नहीं करना चाहिए|
अतः
वह वैष्णव जब भिक्षा और मजदूरी
करने जाता तो तिलक-मुद्रा
को धोकर और कण्ठी को छुपाकर
रखता था|
इस
प्रकारधर्म गुप्त रखकर मजदूरी
करता था|
एक
दिन वह तिलक धोना भूल गया और
मजदूरी करने चला गया|
उसी
समय श्रीठाकुरजी ने याद दिलाया-"
तिलक
तो धोया ही नहीं है|
तिलक
को धोले,
तब
मजदूरी पर जा|"
यह
सुनकर वह बहुत प्रसन्न हुआ|
श्रीठाकुरजी
उससे नित्य बातें करते थे|
उसे
सभी प्रकार का सुख देते थे|
वह
गौडिया भी श्रीगुसांईजी का
ऐसा कृपा पात्र था|
।जय
श्री कृष्ण।
0 comments:
Post a Comment