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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
-
२४)श्रीगुसांईजी
के सेवक ध्यानदास और जगन्नाथदास
की वार्ता
ध्यानदास
श्रीगुसांईजी के पास आकर रहे
थे और जगन्नाथ दास भी श्रीगुसांईजी
के पास आकर रहे|
जगन्नाथदास
के हाथ में पदम का चिह्न था|
वे
जिस वस्तु में एक वस्तु निकालते
थे उसमे एक बढ जाती थी|
दो
वस्तुऍ निकालते थे दो वस्तुऍ
बढ़ जाती थी|
कोई
भी वस्तु कभी घटती नहीं थी|
जगन्नाथदास
इतने अधिक भोले थे कि उनको इस
बात का आभास तक नहीं था|
एक
दिन श्रीगुसांईजी की भेट के
पैसे जगन्नाथदास के पास रखे
थे|
माँगने
के लिए बहुत भिखारी आए|
जगन्नाथदास
ने सभी के लिए पैसा-
दो
पैसा आदि निकाल निकाल कर दिये|
ध्यानदास
यह सब कुछ देख रहा था,
उसने
श्रीगुसांईजी से कहा-"
महाराज,
यह
सभी याचकों को पैसा-
दो
पैसा देता रहता है|
यह
कहाँ से देता है?"
श्रीगुसांईजी
ने ध्यानदास को उत्तर दिया-"
जो
भी कोई सत्कर्म करना चाहता
है,
श्रीप्रभु
सबका मनोरथ पूर्ण करते हैं|
सत्कर्म
करने वाले की सहायता श्रीप्रभु
अवश्य करते है|
उसके
सत्कर्म की व्यवस्था श्रीप्रभु
स्वयं करते हैं,
उसे
कुछ भी कार्य करना नहीं पड़ता
है|
उसकी
व्यवस्था श्रीप्रभु पहले ही
बनाकर रखते हैं|
अतः
व्यक्ति को कभी भी मन में अभाव
नहीं लाना चाहिए|
वैष्णव
स्वयं ही निर्दोष होता हैं|
उस
में जो दोष लगता है,
वह
स्वयं ही दूषित हो जाता है|
तुम
तो स्वयं वैष्णव हो,
तुम
भी दोष रहित हो अतः किसी के
ऊपर क्यों दोषारोपण करते हो?"
यह
सुनकर ध्यानदास बहुत प्रसन्न
हुए|
उन्होंने
ऐसा नियम लिया कि भगवद ध्यान
छोड़कर किसी के दोष नहीं देखूँगा
|
इसके
बाद उन्होंने जीवन पर्यन्त
किसी के दोष नहीं देखे|
भगवद
ध्यान करते रहे|
वे
ध्यानदास और जगन्नाथदास
श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा
पात्र थे जिनको तुरन्त निर्दोष
पन का ज्ञान हो गया,
सो
वे ऐसे वैष्णव थे|
।जय
श्री कृष्ण।
Bahot Khub vyakhyan.
ReplyDeleteJai Sri Krushna.
Bahot Khub vyakhyan.
ReplyDeleteJai Sri Krushna.
Bahot Khub vyakhyan.
ReplyDeleteJai Sri Krushna.