२५२
वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
३७)श्रीगुसांईजी
के सेवक लाहौर के पण्डित की
वार्ता
लाहौर
के पण्डित जीवनदास के चरित्र
देखकर श्रीगोकुल में आए और
कुटुम्ब सहित श्रीगुसांईजी
के सेवक हुए|
उन्होंने
श्रीनवनीतप्रियजी के दर्शन
किए और श्रीनाथजी के दर्शन
करके श्रीगुसांईजी के मुखारविन्द
से पुष्टि मार्ग के सिद्धान्त
समझे|
श्रीठाकुरजी
की सेवा पधराकर ब्रजयात्रा
करके अपने देश के लिए चले गए|
वहॉ
वे पुष्टि मार्ग की रीति से
भलीभाँति सेवा करने लगे|
एक दिन
एक हत्यारा व्यक्ति भिक्षा
माँगने के लिए आया|
वह
हत्यारा ब्राहमण था|
उसने
"राधाकृष्ण"
"राधाकृष्ण"
कहकर
पुकारा|
ब्राह्मण
वैष्णव ने उसे घर बुलाकर भोजन
कराया|
तब तो
उस ब्राह्मण के जाति के लोग
और दूसरे पण्डितों ने उससे
कहा-"
तुमने
एक हत्यारे को बुलाकर भोजन
कराया है|
तुमने
उस हत्यारे का स्पर्श क्यों
किया?"
उस
वैष्णव ब्राह्मण ने कहा-"
इसने
"राधाकृष्ण"
नाम
लिया है,
इसकी
हत्या तो कृष्णनाम जपने से
रही नहीं|
तुमने
शास्त्रो को अवश्य पढ़ा है
लेकिन तुम्हारे अन्तः का
अज्ञान अभी विधमान है|
आप हदय
के अंधकार को दूर करोगे तभी
सत्य को पहचान सकोगे|"
उन
ब्राह्मणो ने कहा-"यदि
इसकी हत्या का पाप नष्ट हो गया
है तो हम तब सत्य मानेंगे,
जब
हरिद्धार में श्रवणनाथ महादेव
का नंदीश्वर इसके हाथ का प्रसाद
खालेगा।"
यह
निर्णय करने के लिए उस हत्यारे
ब्राह्मण को लेकर गाँव के
पण्डित लोग और जाति के ब्राह्मण
हरिद्धार गए|
वहाँ
उस हत्यारे ब्राह्मण ने नंदीश्वर
के सम्मुख प्रसाद का थाल रखा|
वैष्णव
पण्डित नंदीश्वर से प्राथना
करके बोला-
" हे
नंदीश्वर भगवान,
'कृष्ण'
नाम
का उच्चारण करने से यदि इसकी
हत्या मिट गई हो तो आप इसके
हाथ का प्रसाद ग्रहण करें|"
नंदीश्वर
(महादेवजी
का वाहन)
ने उस
महाप्रसाद को ग्रहण कर लिया|
उसने
ब्राह्मण के हाथ से महाप्रसाद
ग्रहण करके कृष्ण नाम की
सार्थकता को उजागर किया|
वह
वैष्णव ब्राह्मण श्रीगुसांईजी
का ऐसा कृपा पात्र हुआ|
।जय
श्री कृष्ण।
0 comments:
Post a Comment