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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
४१)श्रीगुसांईजी
के सेवक देवजी भाई पोरबन्दर
निवासी की वार्ता
देवजी भाई
लुवाना वैष्णव थे|
वे
प्रतिदिन भगवद वार्ता सुनने
के लिए जाया करते थे|
एक दिन
देवजी भाई को ज्वर आ गया|
वे ज्वर
के कारण न तो सात दिन तक स्नान
कर सके और ना ही प्रसाद ले सके|
यहाँ
तक कि वे उठ भी नहीं सके|
सब
वैष्णव मिलकर देवजी के घर आए
उन वैष्णवों को आया हुआ देखकर
देवजी बहुत प्रसन्न हुए|
इतना
अधिक हर्ष हुआ कि वे आनन्द के
आवेश में नृत्य करने लग गए|
उनका
ज्वर आनन्द के आवेश से पलायन
कर गया|
वैष्णवों
ने उनके हर्ष को देखकर देवजी
से पूछा-"
आपका
क्या मनोरथ है,
हमें
बताओ?"
देवजी
ने हर्ष पूर्वक कहा -
" मेरा
जीवन पर्यन्त भगवदियों से
सम्पर्क बना रहे|
उनका
संग कभी नहीं छूटे|
सत्संग
में आसक्ति निरन्तर बनी रहे|"
देवजी
भाई का सत्संग में पूर्ण विश्वास
था|
उसकी
सत्संग में आसक्ति वृत्रासुर
के समान थी|
यथा
श्लोक -
"
मामोत्तमश्लोक
जनेषु सख्यं संसार चक्रे
भ्रमत:
स्वकर्मभिः|
त्वन्माययात्मदतमजदार
गेहेष्वासक्तचित्तस्य न नाथ
भूयात||"
।जय
श्री कृष्ण।
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