Monday, June 15, 2015

Shri Gusaiji Ke Sevak Devji Bhai Porbandar Nivasi Ki Varta

२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ४१)श्रीगुसांईजी के सेवक देवजी भाई पोरबन्दर निवासी की वार्ता

देवजी भाई लुवाना वैष्णव थे| वे प्रतिदिन भगवद वार्ता सुनने के लिए जाया करते थे| एक दिन देवजी भाई को ज्वर आ गया| वे ज्वर के कारण न तो सात दिन तक स्नान कर सके और ना ही प्रसाद ले सके| यहाँ तक कि वे उठ भी नहीं सके| सब वैष्णव मिलकर देवजी के घर आए उन वैष्णवों को आया हुआ देखकर देवजी बहुत प्रसन्न हुए| इतना अधिक हर्ष हुआ कि वे आनन्द के आवेश में नृत्य करने लग गए| उनका ज्वर आनन्द के आवेश से पलायन कर गया| वैष्णवों ने उनके हर्ष को देखकर देवजी से पूछा-" आपका क्या मनोरथ है, हमें बताओ?" देवजी ने हर्ष पूर्वक कहा - " मेरा जीवन पर्यन्त भगवदियों से सम्पर्क बना रहे| उनका संग कभी नहीं छूटे| सत्संग में आसक्ति निरन्तर बनी रहे|" देवजी भाई का सत्संग में पूर्ण विश्वास था| उसकी सत्संग में आसक्ति वृत्रासुर के समान थी| यथा श्लोक -

" मामोत्तमश्लोक जनेषु सख्यं संसार चक्रे भ्रमत: स्वकर्मभिः|
त्वन्माययात्मदतमजदार गेहेष्वासक्तचित्तस्य न नाथ भूयात||"


।जय श्री कृष्ण। 
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