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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
४२)श्रीगुसांईजी
के सेवक गोपालदास की वार्ता
गोपालदास
बडनग़रा नागर थे|
वे बड़
नगर के निवासी थे|
श्रीगुसांईजी
के बड़नगर पधारने पर उनके सेवक
हुए थे|
श्रीठाकुरजी
की सेवा पधरा कर सेवा करने
लगे|
गुजरात
से वैष्णव मण्डल ब्रज में गया
तो उस मण्डल के साथ गोपालदास
श्रीगोकुल गए|
वहाँ
श्रीनवनीतप्रियजी के दर्शन
किए|
उस
मण्डल में पाँच सौ वैष्णव थे,
सभी
ने राजभोग के दर्शन किए|
साथ
ही सभी ने श्रीगुसांईजी के
दर्शन भी किए|
श्रीगुसांईजी
ने भोजन करके गोपालदास के लिए
अपनी जूठन की पत्तल प्रदान
की| तब
गोपालदास ने बाहर आकर सभी
वैष्णव मण्डल को महाप्रसाद
लेने का आग्रह किया|
गोपालदास
ने उस जूठन में से पाँच सौ
पत्तलों पर प्रसाद रखा,
तो भी
उसमें जूठन घटी नहीं|
गोपालदास
ने स्वयं ने भी महाप्रसाद
लिया,
तब भी
जूठन घटी नहीं|
गोपालदास
उठे नहीं|
श्रीगुसांईजी
ने पूछा-"
गोपालदास,
कैसे
बैठे रह गए?"
गोपालदास
ने कहा-"
महाराज,
जब तक
इस पत्तल पर महाप्रसाद रहेगा,
मै कैसे
उठ सकता हूँ|"
श्रीगुसांईजी
तुरन्त स्नान करने पधारे तो
पत्तल की जूठन घट गई|
गोपालदास
भी उठ बैठे|
श्रीगुसांईजी
ने कहा-"
श्रीनाथजी
तुम्हारा मनोरथ पूर्ण करते
हैं|"
गोपालदास
ने कहा-"
महाराज
वे सम्पूर्ण विश्व की पूर्ण
तृप्ति करते हैं,
फिर
मेरी कामना पूर्ण क्यों नहीं
करेंगे?
आप की
कृपा से मेरे सब काम पूर्ण
हैं|"
वह
गोपालदास श्रीगुसांईजी का
ऐसा कृपा पात्र था|
।जय
श्री कृष्ण।
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