Thursday, June 25, 2015

Shri Gusaiji Ke Sevak Naru Vaishnav Ki Varta( Jo Dwarika Ke Marg Me Rahta Tha)

२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ४४)श्रीगुसांईजी के सेवक नरु वैष्णव की वार्ता ( जो द्वारिका के मार्ग में रहता था)

एक समय श्रीगुसांईजी द्वारिका पधार रहे थे| सो वैष्णव ने श्रीगुसांईजी को अपने घर पधरा कर डेरा कराया| यधपि उसका घर बहुत छोटा था तथापि उसका आग्रह देखकर श्रीगुसांईजी ने वहाँ डेरा किया| श्रीगुसांईजी ने उस वैष्णव से पूछा-" तुम अपना निर्वाह कैसे करते हो?" उस ब्राह्मण ने कहा -" गाँव के बाहर एक वृक्ष है, उसके नीचे आपने पहले निवास किया था, उस वृक्ष के नीचे बैठकर भगवद वार्ता करता हूँ| इस गाँव में अन्य कोई वैष्णव नहीं है|" श्रीगुसांईजी ने कहा-" उस वृक्ष को मुझे दिखा कर लाओ|" वह वैष्णव श्रीगुसांईजी को उस वृक्ष के पास ले गया| वह वृक्ष मूल से उखड पड़ा और उसने श्रीगुसांईजी को दण्डवत किया|" श्रीगुसांईजी ने कहा-" इस वृक्ष के पत्र- शाखा-तना आदि सभी को ले चलो, इस वृक्ष का सर्वाङ्ग अङगीकार हो गया है| यह वृक्ष पूर्व जन्म में वैष्णव ही था, यह अन्य लोगों के दोषों को देखता था अतः वृक्ष हुआ है| यह बात सुनकर उस वैष्णव को बड़ा आश्चर्य हुआ| श्रीगुसांईजी द्वारिका पधारे और उस ब्राह्मण ने घर का सर्वस्व भेंटकर दिया| सो वह ब्राह्मण ऐसा कृपा पात्र था, जिससे श्रीगुसांईजी ने स्वयं निर्वाह के विषय में पूछा| जब उन्होंने अलौकिक निर्वाह बताया तो, श्रीगुसांईजी ने अनुमोदन किया| वैष्णव को ऐसा ही होना चाहिए, ऐसे वैष्णवों की वार्ता को कहाँ तक लिखा जाए|


।जय श्री कृष्ण। 
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