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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
४४)श्रीगुसांईजी
के सेवक नरु वैष्णव की वार्ता
( जो
द्वारिका के मार्ग में रहता
था)
एक समय
श्रीगुसांईजी द्वारिका पधार
रहे थे|
सो
वैष्णव ने श्रीगुसांईजी को
अपने घर पधरा कर डेरा कराया|
यधपि
उसका घर बहुत छोटा था तथापि
उसका आग्रह देखकर श्रीगुसांईजी
ने वहाँ डेरा किया|
श्रीगुसांईजी
ने उस वैष्णव से पूछा-"
तुम
अपना निर्वाह कैसे करते हो?"
उस
ब्राह्मण ने कहा -"
गाँव
के बाहर एक वृक्ष है,
उसके
नीचे आपने पहले निवास किया
था, उस
वृक्ष के नीचे बैठकर भगवद
वार्ता करता हूँ|
इस गाँव
में अन्य कोई वैष्णव नहीं है|"
श्रीगुसांईजी
ने कहा-"
उस
वृक्ष को मुझे दिखा कर लाओ|"
वह
वैष्णव श्रीगुसांईजी को उस
वृक्ष के पास ले गया|
वह
वृक्ष मूल से उखड पड़ा और उसने
श्रीगुसांईजी को दण्डवत किया|"
श्रीगुसांईजी
ने कहा-"
इस
वृक्ष के पत्र-
शाखा-तना
आदि सभी को ले चलो,
इस
वृक्ष का सर्वाङ्ग अङगीकार
हो गया है|
यह
वृक्ष पूर्व जन्म में वैष्णव
ही था,
यह अन्य
लोगों के दोषों को देखता था
अतः वृक्ष हुआ है|
यह बात
सुनकर उस वैष्णव को बड़ा आश्चर्य
हुआ|
श्रीगुसांईजी
द्वारिका पधारे और उस ब्राह्मण
ने घर का सर्वस्व भेंटकर दिया|
सो वह
ब्राह्मण ऐसा कृपा पात्र था,
जिससे
श्रीगुसांईजी ने स्वयं निर्वाह
के विषय में पूछा|
जब
उन्होंने अलौकिक निर्वाह
बताया तो,
श्रीगुसांईजी
ने अनुमोदन किया|
वैष्णव
को ऐसा ही होना चाहिए,
ऐसे
वैष्णवों की वार्ता को कहाँ
तक लिखा जाए|
।जय
श्री कृष्ण।
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