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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
३८)श्रीगुसांईजी
के सेवक निहालचंद जलौटा क्षत्रिय
की वार्ता
निहालचंद
जलौटा उज्जैन के निवासी थे|
पुष्टिमार्गीय
ग्रंथो के श्रवण में उनकी बहुत
आसक्ति और आस्था थी|
श्रीठाकुरजी
भी उनको अनुभव कराते रहते थे|
एक
समय की बात है-
ये
निहालचंद श्रीगोकुल के लिए
चल दिए|
मार्ग
में इनका सोलह व्यापारियों
का साथ हो गया|
चोरो
ने मार्ग में से व्यापारियों
के साथ ही निहालचंद का अपहरण
कर इन्हे कैद कर लिया|
चोरो
ने इन्हे मार डालने का निश्चय
किया|
चोरो
का जो मुख्य पटेल (मुखिया)
था,
उसकी
माँ वैष्णव थी|
चाचा
हरिवंशजी ने भीलों के जिस गाँव
को वैष्णव बनाया था,
वह
उसी गाँव की बेटी थी|
एक
दिन रात में उसने कीर्तन की
ध्वनि सुनी,
क्योकि
निहालचंद भाई रात्रि के समय
कीर्तन करते थे|
पटेल
की माँ रात्रि में निहालचंद
के कैद खाने के निकट गई और उससे
उनका नाम गाँव व स्थान पूछा|
जैसे
ही इन्होने अपना नाम लिया,
वृद्धा
की श्रद्धा उमड़ पड़ी|
उसने
वैष्णवों से निहालचंद का
गुणगान पहले से ही सुन रखा था|
उसने
अपने बेटे को बुलाकर उन्हें
कैद खाने से बहार निकाला|
उनसे
अपने बेटे को क्षमा कराया|
समस्त
गाँव को वैष्णव दीक्षा दिखाई|
श्रीगुसांईजी
को गाँव से भेँट दिलाई|
निहालचंद
ने उन चोरों से कहा कि वे चोरी
का निंदित कार्य छोड़कर खेती
करना प्रारम्भ करें|
निहालचंद
ने साथ के सोलह व्यापारियों
को भी मुक्त करा दिया|
वहाँ
से निहालचंद उन व्यापारियों
के साथ श्रीगोकुल आए|
वे
सोलह व्यापारी भी वैष्णव हुए|
वैष्णवो
के पास जो माल था,
वह
सब उन्होंने श्रीगुसांईजी
को भेंट कर दिया|
वे
निहालचंद ऐसे कृपा पात्र थे
जिनके साथ से भीलों का गाँव
और सभी व्यापारी वर्ग वैष्णव
हो गया|
।जय
श्री कृष्ण।
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