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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
४०)श्रीगुसांईजी
के सेवक उत्तमदास की वार्ता
वे उत्तमदास
गुजरात में रहते थे|
उनके
पास द्रव्य नहीं था|
भगवदिच्छा
से उनके पास थोड़ा द्रव्य हुआ
तो उन्होंने दस हजार रूपये
का परकाला लिया|
श्रीगोकुल
जाकर श्रीगुसांईजी को विनती
करके श्रीनाथजी को जरी का
परकाला अंगीकार कराया|
श्रीनाथजी
के दर्शन करके पुनः गुजरात आ
गए|
जिससे
परकाला उधार लिया था,
उसका
कर्ज चुकाया|
उत्तमदास
को घर में श्रीनाथजी ने कहा-
" मुझे
परकाले की जरुरत नहीं थी,
तूने
इतना श्रम करके परकाला क्यों
लिया?"
उत्तमदास
ने विनय पूर्वक कहा-"
हे
महाप्रभु ,
आप में
सर्व सामर्थ्य है|
आपके
लिए सर्वत्र सर्ववस्तु तैयार
है, जो
भी कुछ आप चाहते है,
वह
वस्तु सब स्थानों पर सर्वदा
प्राप्त रहती है|
परन्तु
दास का धर्म सेवा के बिना नहीं
है|
हमारी
सेवा कौन सी रीति से अंगीकार
हो सकती है?"
यह
सुनकर श्रीठाकुरजी बहुत
प्रसन्न हुए और परकाला सहित
उत्तमदास को घर में दर्शन दिए|
वे
उत्तमदास ऐसे कृपा पात्र थे|
।जय
श्री कृष्ण।
Giriraj Dharan Ki Jay Ho , . . . .
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