Thursday, June 11, 2015

Shri Gusaiji Ke Sevak Uttamdas Ki Varta

२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ४०)श्रीगुसांईजी के सेवक उत्तमदास की वार्ता


वे उत्तमदास गुजरात में रहते थे| उनके पास द्रव्य नहीं था| भगवदिच्छा से उनके पास थोड़ा द्रव्य हुआ तो उन्होंने दस हजार रूपये का परकाला लिया| श्रीगोकुल जाकर श्रीगुसांईजी को विनती करके श्रीनाथजी को जरी का परकाला अंगीकार कराया| श्रीनाथजी के दर्शन करके पुनः गुजरात आ गए| जिससे परकाला उधार लिया था, उसका कर्ज चुकाया| उत्तमदास को घर में श्रीनाथजी ने कहा- " मुझे परकाले की जरुरत नहीं थी, तूने इतना श्रम करके परकाला क्यों लिया?" उत्तमदास ने विनय पूर्वक कहा-" हे महाप्रभु , आप में सर्व सामर्थ्य है| आपके लिए सर्वत्र सर्ववस्तु तैयार है, जो भी कुछ आप चाहते है, वह वस्तु सब स्थानों पर सर्वदा प्राप्त रहती है| परन्तु दास का धर्म सेवा के बिना नहीं है| हमारी सेवा कौन सी रीति से अंगीकार हो सकती है?" यह सुनकर श्रीठाकुरजी बहुत प्रसन्न हुए और परकाला सहित उत्तमदास को घर में दर्शन दिए| वे उत्तमदास ऐसे कृपा पात्र थे|



।जय श्री कृष्ण। 
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