Monday, June 29, 2015

Shri Gusaiji Ke Sevak Sachor Bhrahman Ki Varta

२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ४५)श्रीगुसांईजी के सेवक साचौरा ब्राह्मण की वार्ता

पुरषोत्तम दास गुजरात में रहा करते थे| वे पुरषोत्तम दास एक बार गुजरात से श्रीगोकुल को गए| वहां वे श्रीगुसांईजी के सेवक हुए| श्रीगुसांईजी की कृपा से पृष्टिमार्गीय ग्रंथो का अध्ययन कर ज्ञान किया| फिर पुरषोत्तम दास ब्रजयात्रा को गए| कदमखण्डी में रसोई की| दाल बाटी बनाकर श्रीनाथजी को भोग धरा| श्रीनाथजी ने पधारकर आरोगा और पुरषोत्तमदास की प्रशंसा करके दाल बाटी बनाने की सरहाना की| उन्होंने पुरषोत्तमदास को आज्ञा की-" तुम हमारे रसोई में प्रवेश करो|" पुरषोत्तमदास ने कहा-" महाराज, यह बात तो श्रीगुसांईजी की आज्ञा पर निर्भर करती है|" श्रीनाथजी ने श्रीगुसांईजी को आज्ञा की-" पुरषोत्तमदास बहुत सुन्दर रसोई करते है, इन्हे हमारी रसोई में स्थान दो|" श्रीगुसांईजी ने पुरषोत्तम दास को श्रीनाथजी के भीतरियापने की सब सेवा सौप दी| पुरषोत्तमदास रसोई करते थे तो श्रीनाथजी उन्हें सिखाते थे की रोटी बाटी इस प्रकार बनाओ|" पुरषोत्तम दास श्रीनाथजी की सेवा छोड़ कर कही भी नहीं गए| उन्होंने धन संग्रह भी नहीं किया| पुरषोत्तमदास श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा पात्र थे कि महाप्रसाद की पत्तल लाकर वैष्णवो को प्रसाद लिवाते थे| श्रीगुसांईजी अपने श्रीमुख से उनकी सरहाना करते थे|


।जय श्री कृष्ण। 
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