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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
४५)श्रीगुसांईजी
के सेवक साचौरा ब्राह्मण की
वार्ता
पुरषोत्तम
दास गुजरात में रहा करते थे|
वे
पुरषोत्तम दास एक बार गुजरात
से श्रीगोकुल को गए|
वहां
वे श्रीगुसांईजी के सेवक हुए|
श्रीगुसांईजी
की कृपा से पृष्टिमार्गीय
ग्रंथो का अध्ययन कर ज्ञान
किया|
फिर
पुरषोत्तम दास ब्रजयात्रा
को गए|
कदमखण्डी
में रसोई की|
दाल
बाटी बनाकर श्रीनाथजी को भोग
धरा|
श्रीनाथजी
ने पधारकर आरोगा और पुरषोत्तमदास
की प्रशंसा करके दाल बाटी
बनाने की सरहाना की|
उन्होंने
पुरषोत्तमदास को आज्ञा की-"
तुम
हमारे रसोई में प्रवेश करो|"
पुरषोत्तमदास
ने कहा-"
महाराज,
यह बात
तो श्रीगुसांईजी की आज्ञा पर
निर्भर करती है|"
श्रीनाथजी
ने श्रीगुसांईजी को आज्ञा
की-"
पुरषोत्तमदास
बहुत सुन्दर रसोई करते है,
इन्हे
हमारी रसोई में स्थान दो|"
श्रीगुसांईजी
ने पुरषोत्तम दास को श्रीनाथजी
के भीतरियापने की सब सेवा सौप
दी|
पुरषोत्तमदास
रसोई करते थे तो श्रीनाथजी
उन्हें सिखाते थे की रोटी बाटी
इस प्रकार बनाओ|"
पुरषोत्तम
दास श्रीनाथजी की सेवा छोड़
कर कही भी नहीं गए|
उन्होंने
धन संग्रह भी नहीं किया|
पुरषोत्तमदास
श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा
पात्र थे कि महाप्रसाद की
पत्तल लाकर वैष्णवो को प्रसाद
लिवाते थे|
श्रीगुसांईजी
अपने श्रीमुख से उनकी सरहाना
करते थे|
।जय
श्री कृष्ण।
Jai Shri Krishna
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