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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
४६)श्रीगुसांईजी
के सेवक एक नाई वैष्णव की वार्ता
द्वारिका
के मार्ग में एक गाँव में नाई
रहता था|
जब
श्रीगुसांईजी द्वारका पधारे
तो रास्ते में उस गाँव में
ठहरे वह नाई श्रीगुसांईजी
के नाख़ून उतारने आया|
जब तक
उसने श्रीगुसांईजी के नाख़ून
उतारे तब तक तो उसे श्रीगुसांईजी
मनुष्य रूप में दिखाई दिये|
जब वह
नाख़ून उतार चूका तो उसे साक्षात
पूर्ण पुरषोत्तम के रूप में
दर्शन हुए|
उसने
श्रीगुसांईजी से प्राथना
की-"
मुझे
आप अपनी शरण में ले लो|"
श्रीगुसांईजी
ने उसे नाम निवेदन कराया|
वह नाई
परम भवदीय हुआ उसने अपने समस्त
औजार(उस्तरा
आदि)
कूआ
में डाल दिए और ऐसा विचार किया
कि अब अन्य कोई व्यवसाय करके
निर्वाह करूँगा अतः वह व्यापार
करने लग गया|
श्रीठाकुरजी
धीरे -धीरे
उस पर प्रसन्न हुए|
वह नाई
श्रीगुसांईजी का ऐसा कृपा
पात्र था जिसको थोड़े ही दिनों
में भगवल्लीला का अनुभव हो
गया|
।जय
श्री कृष्ण।
Jay sheer Krishna
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